नि:स्वार्थ, नि:शुल्क विद्यादान करने झोंक दी पूरी ताकत
चंद बच्चों से शुरू हुई यह मुहिम आज चढ़ रही है परवान
बैतूल(राष्ट्रीय जनादेश)। विद्या की देवी मां सरस्वती है ज्ञान का भण्डार ज्योंं-ज्यों खर्चे त्यों-त्यों बढ़े बिन खर्चे घट जाए। पढ़ाई-लिखाई में अक्सर इन पंक्तियों को बच्चों और बढ़ों को सिर्फ इसलिए सुनाया जाता है कि वह स्वयं शिक्षित होकर दूसरो को भी शिक्षित करने के लिए विद्या दान कर सकें। आज हम आपको एक ऐसे ही शिक्षक ब्रजेश शुक्ला के विषय में बताने जा रहे हैं जो कि शिक्षा दान करने का अश्वमेघ यज्ञ चला रहे हैं। इस यज्ञ में शिक्षा, समाजसेवा के क्षेत्र से जुड़े ना सिर्फ अपनी-अपनी आहूतियां डाल रहे हैं बल्कि स्लम बस्ती में निवासरत मजदूरों के बच्चों को ककहरा सिखाने में उनकी भरपूर मदद भी कर रहे हैं। ग्वालियर क इस शिक्षक और उनकी टीम से नि:संदेह सकारात्मक प्रेरणा लेकर नवपहल हर जिले में की जा सकती है।
एक बच्चे से 1200 बच्चे तक पहुंची मुहिम
मजदूर सेवारत पाठशाला के संस्थापक एवं संचालक शिक्षक ब्रजेश शुक्ला निवासी ग्वालियर ने बताया कि वह पेशे से स्वयं शिक्षक है इसलिए दूसरो को शिक्षित करना उनका परम धर्म है। उन्होंने बताया कि समाज ने उन्हें बहुत कुछ दिया है अब बारी हमारी है कि हम भी समाज को कुछ नहीं तो कम से कम ऐसे बच्चों को शिक्षित करने का काम तो कर ही सकते हैं जो कि अत्याधुनिक संसाधनों से दूर बेहद गरीब तबके के हैं। श्री शुक्ला ने बताया कि नि:शुल्क, नि:स्वार्थ मजदूर सेवार्थ पाठशाला की स्थापना जून 2020 साइंस कॉलेज ग्वालियर के बाहर रहने वाले मजदूर भाइयों के 4 बच्चों से प्रारंभ हुई थी। आज डेढ़ दर्जन ऐसी शालाओं में 1200 बच्चे विद्यार्जन कर रहे हैं।
इनके सहयोग से परवान चढ़ी मुहिम
शिक्षक ब्रजेश शुक्ला ने बताया कि नि:शुल्क, नि:स्वार्थ मजदूर सेवार्थ पाठशाला की मुहिम शिक्षाविद् ओमप्रकाश दीक्षित सेवानिवृत्त डिप्टी डायरेक्टर के मार्गदर्शन में निरंतर संचालित हो रही है। पाठशाला का उद्देश्य ही शाला से विमुख बच्चों को शाला से जोडऩा है। श्री शुक्ला ने बताया कि पाठशाला में मजदूर भाइयों के बच्चों को विद्यादान एवं स्वावलंबन का प्रशिक्षण दिया जाता है जिससे यह बच्चे पढ़ लिखकर अपने माता-पिता एवं अपने देश का नाम रोशन करें। अब तक इस मुहिम के तहत लगभग 12 00बच्चों को विद्यादान के तहत शिक्षा की मुख्यधारा से जोडऩे का पुनीत कार्य किया जा चुका है। श्री शुक्ला और उनके सहयोगियों के अथक प्रयासों को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि मैं तो अकेला ही चला था मंजिले जानिब लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया!
एक नजर में दो साल का सफर
1. मजदूर सेवार्थ पाठशाला शाखा साइंस कॉलेज
2. मजदूर सेवार्थ पाठशाला शाखा विवेकानंद नीदम
3. मजदूर सेवार्थ पाठशाला शाखा मेला ग्राउंड
4. मजदूर सेवार्थ पाठशाला शाखा किशन बाग बहोड़ापुर
5. मजदूर सेवार्थ पाठशाला शाखा बदनापुर पुरानी छावनी
6. मजदूर सेवार्थ पाठशाला शाखा ट्रांसपोर्ट नगर
7. मजदूर सेवार्थ पाठशाला टंकी वाले हनुमान सागर ताल रोड
8. मजदूर सेवार्थ पाठशाला ट्रिपल आईटीएम के सामने खेल गांव मुरैना रोड
9. मजदूर सेवार्थ पाठशाला बल्ला का डेरा बुजुर्ग रोड डबरा
10. मजदूर सेवार्थ पाठशाला ईट भट्टा झांसी रोड डबरा
11. मजदूर सेवार्थ पाठशाला बेटी बचाओ चौराहा कंपू
12. मजदूर सेवार्थ पाठशाला सिकंदर कंपू
13. मजदूर सेवार्थ पाठशाला बिरला नगर रेलवे स्टेशन
14. मजदूर सेवार्थ पाठशाला ईट भट्टा सिधौली रेलवे स्टेशन
15. मजदूर सेवार्थ पाठशाला करैरा