बैतूल को पूरे हुए 200 साल: 154 कलेक्टर्स यहां से कर चुके हैं राज

बैतूल को पूरे हुए 200 साल: 154 कलेक्टर्स यहां से कर चुके हैं राज
बैतूल। बैतूल को जिला बने दो सौ साल पूरे हो गए। इसी के जश्न की तैयारियां की जा रही हैं। लेकिन वह कलेक्ट्रेट बदहाल है। जहां 154 कलेक्टर्स ने कलेक्टरी की थी। बैतूल का संयुक्त कलेक्टर भवन बनने के बाद प्रशासन ने उस ऐतिहासिक भवन को भुला दिया। जिससे दो सौ साल की यादें जुड़ी हुई है।
पुराने कलेक्ट्रेट को प्रशासन ने होमगार्ड सैनिकों के लिए सौंप दिया। लेकिन यहां की तस्वीरें इसकी बदहाली को बयान कर रही हैं। वर्षों से यहां साफ सफाई तो दूर झाड़ू तक नहीं लगी। जहां कलेक्टर बैठा करते थे। वह चैंबर खराब हो चुका है। वहीं जिस हॉल में कलेक्टर कोर्ट लगा करता था। उसे जवानों को रहने के लिए सौंप दिया। बाकी हॉल होमगार्ड कार्यालय को सौंपे गए हैं। जबकि, मीटिंग हाल एसडीआरएफ को सौंपा है।
नेकी की दीवार भी बदहाल
यहां वर्षों पहले बनाई गई नेकी की दीवार भी बदहाल हो चुकी है। अब न तो यहां कोई सामग्री पहुंचाने आ रहा है और न ही यहां कोई सामग्री ले जाने लायक बची है। फटे पुराने कपड़े यहां वहां फैले हुए हैं। नया भवन बनने के बाद इसपर धयान नहीं दिया गया।
1822 में बना था कलेक्ट्रेट
1822 में जिला मुख्यालय वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया था। जो उस समय एक गांव मात्र था। तब यह बदनूर ढाना कहलाता था। जिसका अर्थ स्थानीय बोली में बदनूर गांव होता है। गजेटियर के मुताबिक सन 1822 में डिप्टी कमिश्नर जो उस समय जिला प्रशासन का प्रमुख था, ने अपना निवास बैतूल बाजार से बदनूर स्थानांतरित कर दिया था। आम उपयोग में और डाक पते में बैतूल ही जिला मुख्यालय माना जाता रहा। सन 1818 में यह जिला और नर्मदा क्षेत्र कुछ समय के लिए एक कमिश्नर द्वारा शासित था। जो नागपुर के रेजिडेंट के नियंत्रण में था। सन 1820 में 12 जिलों का एक संभाग जो सागर और नर्मदा क्षेत्र कहलाता था। गठित किया गया था।
गवर्नर जनरल के एजेंट के अधीन इसे रखा गया था। जिसका मुख्यालय जबलपुर था। जिले के प्रभारी अधिकारी पहले एजेंट के सहायक कहलाते थे। सन 1843 में उनका पद नाम बदलकर डिप्टी कमिश्नर कर दिया गया। सन 1835 से 1841 तक बैतूल होशंगाबाद और नरसिंहपुर को मिलाकर एक जिला बनाया गया था। जिसका मुख्यालय होशंगाबाद में था, तथा दूरस्थ स्थानों में सहायक रखे गए थे। बाद में 1853 से 1861 तक यह जिला उत्तर पश्चिमी प्रांत का एक भाग था। सन 1861 में मध्य प्रांत के गठन के बाद बैतूल कुछ समय के लिए 1862 तक नर्मदा संभाग का मुख्यालय रहा। उस समय से यह जिला मुख्यालय है। यह 31 अक्टूबर 1931 तक नर्मदा कमिश्नर संभाग का एक भाग रहा। उसके बाद से नर्मदा कमिश्नरी समाप्त कर दी गई और बेतूल को नागपुर संभाग में मिला दिया गया।
बनाया जा सकता है मेमोरियल
इस स्थान पर सन् 2019 तक 154 कलेक्टर यहां बैठकर प्रशासन प्रमुख के रूप में प्रशासनिक इकाई चला चुके हैं। कई महत्वपूर्ण दस्तावेजों से लेकर कोर्ट में किए गए कई खास फैसले, पुरातात्विक सामग्री के साथ इसे स्मारक के तौर पर बदला जा सकता है। लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों की रुचि न होने से इस भवन की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया।
पुराने भवन को तोड़ने का प्लान
6111 मीटर जमीन पर पुनर्निर्माण के नाम पर इसे तोड़ा जाना सुनिश्चित किया गया। इसे नीलाम करके यहां छह संरचनाएं बनाने की तैयारी है। इसके लिए आर्किटेक्ट हितेश मुले को नियुक्त किया गया है। जो प्रशासन को अपना प्लान सौपेंगे।

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