अब तत्काल शिशु गृह नहीं जाएंगे अनाथ बच्चे:सीएमएचओ -सीएस
बच्चों के स्वस्थ्य होने और दूध पीने लायक होने तक रखा जाएगा एसएनसीयू में
बोले सीएमएचओ-सीएस अनाथ बच्चों के लिए जितनी हो सकेगी दी जाएगी अतिरिक्त सेवा
शिशु गृह को बच्चों के निजी अस्पताल में जाकर हजारों खर्च करने से मिलेगी राहत
बैतूल। यहां-वहां झाडिय़ों सहित डस्टबीन में मरने के लिए फेंक दिए गए अनाथ बच्चों को जिला अस्पताल के एसएनसीयू में रखने के बजाए तत्काल शिशु गृह ले जाने के लिए फरमान सुना दिया जा रहा था। इससे शिशु गृह प्रबंधन को जहां बच्चों का उपचार बच्चों के निजी अस्पतालों में ले जाकर कराने विवश होना पड़ रहा था वहीं हजारों रुपए खर्च भी करने पड़ रहे थे। इस ज्वलंत मुद्दे को जेएनएन ने ‘हम तो अपनो के ठुकराए हैं तुम तो हमसे मत मोड़ो मुंह….Ó शीर्षक से प्रमुखता के साथ समाचार प्रकाशित किया था। इसका असर यह हुआ कि स्वास्थ्य महकमे के सीएमएचओ डॉ. एके तिवारी और सिविल सर्जन डॉ. अशोक बारंगा ने कहा कि अब आगे ऐसा बिल्कुल भी नहीं होगा। एक-दो-तीन या फिर चार दिन के यहां-वहां मिलने वाले शिशुओं को अब तब तक जिला अस्पताल के एसएनसीयू में रखा जाएगा जब तक कि वह पूरी तरह से स्वस्थ्य और दूध पीने लायक ना हो जाए। डॉ. तिवारी और डॉ. बारंगा ने कहा कि अनाथ बच्चों के लिए जितनी संभव हो सकेगी उतनी अतिरिक्त सेवाएं भी देने का भरपूर प्रयास किया जाएगा।
स्वस्थ्य बताए दो बच्चों पर खर्च हुए हजारों रु.
प्राप्त जानकारी के अनुसार दो अलग-अलग झाडिय़ों में मिले दो शिशुओं को जिला अस्पताल से स्वस्थ्य बताकर जिला मुख्यालय पर चक्कर रोड स्थित मातृछाया शिशु गृह में ले जाने का फरमान जिला अस्पताल से सुना दिया गया था। जबकि इन दोनों बच्चों की हालत खराब थी। एक बच्चे को तो कई जगह चीटिंयों ने काट भी दिया था। इन बच्चों को जिला अस्पताल से चलता कर दिए जाने के बाद इन्हें मातृछाया शिशु प्रबंधक मुन्ना यादव द्वारा शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. मनीष एलेक्जेंडर के अस्पताल ले जाया गया जहां एक बच्चे पर 8 हजार और दूसरे बच्चे पर 14 हजार रु. खर्च करने के बाद दोनों बच्चे स्वस्थ्य हुए।
पहले थी यह व्यवस्था
जब भी जिले भर में कोई नवजात शिशु मिलता था तो उसे सीधे जिला अस्पताल के एसएनसीयू में रखा जाता था। यहां पर उसके पूरी तरह से स्वस्थ्य होने और दूध पीने लायक होने के बाद ही उसे मातृछाया शिशु गृह में भेजा जाता था। जबकि विगत कुछ माह से यह व्यवस्था ध्वस्त कर दी गई थी। अब तत्काल एक या दो दिनों तक एसएनसीयू में नवजात शिशु को रखने के बाद शिशु गृह ले जाने का फरमान सुनाया जाने लगा था। यह फरमान सुनाने वालों को यह तो सोचना चाहिए कि शारीरिक रूप से अस्वस्थ्य बिना जैविक माता-पिता के यह बच्चे कैसे जिंदगी जी पाएंगे?
स्वस्थ्य बच्चों के लिए होता है शिशु गृह
शिशु गृह के मायने ही यह होते हैं कि यह सिर्फ स्वस्थ्य बच्चों के लिए ही होता है। यहां पर नवजात शिशु के जरा भी असामान्य होने पर तत्काल ही उसे शासकीय अस्पताल में व्यवस्था ना होने पर ही निजी अस्पताल में उपचारार्थ भर्ती कराना पड़ता है। इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि शिशु गृह में सिर्फ बच्चे की दैनिक क्रिया के साथ-साथ मालिश और दूध पिलाने का कार्य किया जाता है। इसके अलावा कुछ भी नहीं। जबकि एसएनसीयू में सभी प्रकार की बच्चों की सेहत से संबंधित सुविधाएं रहती है। इसलिए बच्चे के बीमार होने पर उसे एसएनसीयू में भर्ती किया जाता है।
इनका कहना…
दो बच्चों को जिला अस्पताल से स्वस्थ्य बताकर शिशु गृह ले जाने का फरमान सुना दिया गया था। दोनों बच्चे अस्वस्थ्य थे, उन्हें मेरे द्वारा शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. मनीष ऐलेक्जेंडर के यहां भर्ती कराया गया जिसमें एक बच्चे पर 8 और दूसरे पर 14 हजार रुपए खर्च आया है। अगर ऐसा ही होते रहा तो शिशु गृह संचालित करना मुश्किल हो जाएगा।
मुन्ना यादव, प्रबंधक, मातृछाया शिशु गृह, बैतूल
हमारे द्वारा यह भी व्यवस्था बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि शिशु गृह में एक बच्चों का डॉक्टर नियमित रूप से विजिट करें। वैसे बीमार बच्चों को जिला अस्पताल में ही भर्ती शुरू से कराया जाते रहा है। अनाथ बच्चों को शासन की सुविधाओं का लाभ मिलना चाहिए।
मुकेश खण्डेलवाल, अध्यक्ष, मातृछाया शिशु गृह, बैतूल
वैसे ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए कि बच्चे को स्वस्थ्य बताकर शिशुगृह के लिए भेजा जाए और बाद में उसे निजी बच्चों के अस्पताल में भर्ती कराना पड़े। आगे से ऐसा बिल्कुल नहीं होगा। बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ्य होने के बाद ही एसएनसीयू से शिशु गृह के लिए भेजा जाएगा।
डॉ. अशोक बारंगा, सिविल सर्जन, बैतूल