आस्था और विश्वास का अनूठा संगम महाकुंभ

  • जहां मुश्किलें और बाधाएं विचलित नहीं उत्साहित करती हैं
  • महाकुंभ से लौटकर मयंक भार्गव?

महाकुंभ वह स्थान है जहां विश्वास, भक्ति और शांति का मिलन होता है। महाकुंभ भारत की एकता और विविधता का प्रतीक है यह दिखाता है कि कैसे लाखों लोग एक दिव्य कारण, आस्था और विश्वास के लिए एक साथ आते हैं। महाकुंभ केवल एक अनुष्ठान नहीं है यह एक दीर्घकालिक आध्यात्मिक जागृति भी है।
महाकुंभ में एक साधारण व्यक्ति भी दिव्य आत्मा का अनुभव करता है और अपना जीवन संवारने का मार्ग पता है। महाकुंभ का स्नान केवल शरीर को ही नहीं आत्मा को भी शुद्ध करता है। कुंभ मेला एक ऐसा अवसर है जहां धरती पर भगवान के दर्शन होते हैं।
कुंभ में डुबकी लगाना मोक्ष का द्वार खोलना है
12 वर्षों में एक बार लगने वाला यह मेला भारत की आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है। कुंभ का मेला सिर्फ एक त्यौहार नहीं है यह अनोखा आध्यात्मिक अनुभव है। महाकुंभ वह स्थान है जहां शरीर को शुद्ध किया जाता है और आत्मा को जागृत किया जाता है। महाकुंभ के जल में डुबकी लगाने से भगवान से निकटता का अनुभव होता है। सभी पंत और संप्रदायों को एक माला में पिरोना जाति-पाति का भेद मिटता विविधता में एकता दर्शाता ही महाकुंभ है।
कुंभ की यात्रा के पूर्व चारों ओर से मिल रही ट्रैफिक जाम और करोड़ों की उमड़ती भीड़ की खबरें मन में शंका का वातावरण पैदा कर रही थी परंतु अंत में आस्था और विश्वास की जीत हुई और महाकुंभ की ओर सड़क मार्ग से ही प्रस्थान किया। रास्ते में अनेक जगह ट्रैफिक की समस्या नजर आई परंतु मां गंगे की कृपा से कहीं भी ट्रैफिक जाम में नहीं फंसे।
जबलपुर से रीवा तक अनेक स्थानों पर सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने नाश्ते के नि:शुल्क स्टाल लगाए हुए थे। जहां बड़ी संख्या में लोग वाहन रोककर स्वल्पाहार ग्रहण कर रहे थे।
हमारा वाहन बगैर किसी विघ्न के प्रयागराज की सीमा में प्रवेश कर गया। उसके बाद शुरू हुआ परीक्षा का दौर जो पुलिसकर्मियों के इशारे पर रास्ता बदलते-बदलते लंबे-लंबे जाम में फंसते चले गए और रात्रि 2:00 बजे तक जाम में फंसे रहे। उसके बाद एक सड़क की ओर पुलिसकर्मियों ने रवाना करते हुए कहा कि इस सड़क से जाइए सीधे संगम पहुंच जाएंगे। सड़क पर वहां से आगे बढ़े तो देखा सैकड़ो लोग सर पर, बगल में, पोटली में, झोलों में समान लिए बच्चों का हाथ पकड़े पैदल चले जा रहे हैं। कई किलोमीटर तक चलने पर भी यह काफिला कम नहीं हुआ। आश्चर्यजनक चीज यह देखने को मिली कि किसी भी पैदल यात्री के चेहरे पर थकान या लंबी दूरी तक चलने की शिकन नहीं थी।
सभी लोग अपनी आस्था और विश्वास में संगम तट की ओर बढ़ रहे थे। अनेक ग्रामीण महिलाएं तो ऐसी भी थी जिनकी गोदी में 3 से 6 महीने के बच्चे थे परंतु उनके चेहरे पर भी सिर्फ महाकुंभ में संगम के स्नान की उत्सुकता और ललक ही दिख रही थी।
रास्ते में सोने की व्यवस्था भी पूरी साथ लेकर गए थे जिसमें हवा भर कर बन जाने वाले गद्दे, तकिए, चादर, रजाई, चटाई सारा सामान साथ था। इसलिए किसी भी पेड़ की छांव में अपना कैंप लगाने में कोई कठिनाई नहीं होती थी।
महाकुंभ में ट्रैफिक और भीड़ के भय से घर से बड़ी तादाद में खाना नाश्ता और पानी साथ लेकर चले जिस रास्ते में कहीं पेड़ की छांव में बैठकर तो कहीं ढाबे वाले से मिन्नते कर कुछ रूपए देकर ढाबे में बैठकर आनंदपूर्वक खाना खाया और पिकनिक का मजा लेते हुए महाकुंभ की यात्रा पर चलते रहे। रात्रि में प्रयागराज पहुंचने का फायदा यह हुआ कि संगम के अरेल घाट किनारे की पार्किंग तक वहां सुरक्षित पहुंच गया लेकिन वहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं था और दिन भर की यात्रा से हुई थकान से गाड़ी में ही सभी लोग सो गए फिर सुबह उठ और नित्य कर्म के बाद गंगा स्नान के लिए संगम तट की ओर प्रस्थान किया जहां पहले से ही विशाल भीड उमड़ रही थी।
करीब 4 से 6 किलोमीटर का सफर पैदल तय करना थोड़ा कठिन लग रहा था। इस बीच में अनेक युवा मोटरसाइकिल और स्कूटर लेकर यात्रियों को संगम तक तक पहुंचा रहे थे। ऐसे ही दो युवकों से सौदा तय कर संगम तट तक पहुंच गए उसके बाद भी एक लंबा सफर बोर्ड क्लब तक करना पड़ा। वहां उमड़ती भीड़ और गंगा तट को देखकर आधी थकान तो वैसे ही दूर हो गई। इसके बाद संगम के लिए नाव वाले से बात कर संगम की ओर नाव में बैठकर प्रस्थान किया।
संगम तक नाव से पहुंचने के बाद से उतर कर संगम में डुबकी लगाने का अवसर आया तब तक मन शरीर पूरी तरीके से थकान से भर चुका था। लेकिन पहले डुबकी लगाने के बाद ही मानो चमत्कार सा हुआ और सारी शारीरिक, मानसिक सभी प्रकार की थकान, चिंता अचानक कहां गायब हो गई ? पता ही नहीं चला।
एक नया दिव्य अनुभव और ऊर्जा का संचार पूरे शरीर में हुआ। बहुत तेज गर्मी के बावजूद चारों ओर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही थी और हर ओर हर-हर गंगे का जय घोष सुनाई दे रहा था।
लोग पूरी आस्था, श्रद्धा और विश्वास के साथ अकेले और पति-पत्नी हाथ पकड़ कर संगम में डुबकियां लगाकर अपने पूर्वजों और परिजनों को का स्मरण कर रहे थे। संगम पर जो माहौल था वह इतना दिव्या आध्यात्मिक और मंत्र मुक्त कर देने वाला था कि शब्दों में उसे बयां करना बहुत ही मुश्किल है लोग पूरी आस्था के साथ गंगा मैया का पूजन कर रहे थे चुनरिया चढ़ा रहे थे, दीपदान कर रहे थे और पूर्वजों का नाम लेकर तर्पण भी कर रहे थे।
ऐसा लग रहा था मानो किसी अद्भुत लोक में आ गए हैं। इस माहौल को शब्दों में लिखना तो कठिन है लेकिन सिर्फ दिल और दिमाग से महसूस किया जा सकता था। संगम में डुबकियां लगाने के बाद दिन-रात यात्रा की थकान तो ऐसे गायब हो गई मानो कोई बच्चा मां की गोद में सारी चिंताओं से मुक्त होकर सो जाता है। साथ ही महसूस हुआ कि शरीर के साथ-साथ आत्मा भी जागृत हो गई है। स्नान केवल शरीर को ही शुद्ध करता है और वहां जाकर आत्मा की शुद्धता का अहसास हुआ। एक अलग ही आत्म संतुष्टि महसूस हो रही थी जिसका आनंद अद्भुत था।
संगम स्नान कर लौट के बाद इतनी स्फूर्ति और ताजगी महसूस हो रही थी की लग ही नहीं रहा था कि एक पूरा दिन और रात का संघर्षपूर्ण सफर कर यहां तक पहुंचे हैं। बस मन में प्रसन्नता ही प्रसन्नता फूट रही थी। गंगा मैया की कृपा से लौटते समय भी सिर्फ प्रयागराज से बाहर निकलते तक 2 घंटे के लगभग ट्रैफिक में धीमे-धीमे निकलना पड़ा उसके बाद रास्ते भर कोई कठिनाई नहीं हुई और सफलतापूर्वक महाकुंभ की यात्रा संपन्न हुई और हम ईश्वर को बहुत-बहुत धन्यवाद देते हैं कि हम इस महाकुंभ के साक्षी बने।
महाकुंभ में संगम में स्नान कर रहे लाखों लोगों को देखकर यह भी महसूस हुआ कि देश में भले ही सैकड़ो जाति, संप्रदाय, विभिन्नताएं विद्यमान हो लेकिन इस महाकुंभ ने इस जाति, संप्रदाय की विविधता और भिन्नताओं को एककर एकजुट भारत का नया संदेश भी दिया है।
दिव्य स्नान में डुबकी लगाएंगे,
पुण्य की गंगा में मन को बहाएंगे।
हर हर गंगे के जयकारे होंगे,
आत्मा के सारे पाप विसराएंगे।
नौका विहार और भजन का रस,
हर कोई डूबेगा आत्मा के बस।
संगम तट पर होगा अद्भुत प्रकाश,
कुंभ मेला 2025 बनेगा खास।
चारों और दिख रहा था, डुबकी लगाने वालों का सैलाब
हर हर गंगे के जयकारे कर रहे थे, सबको निहाल।
चमक रहे थे दीपक, गूंज रहे थे मंत्र।
मेला क्षेत्र बन गया था, आस्था का पुंज।
नौका विहार और भजनों का शोर,
हर कोई डूब रहा था भक्ति में होकर भाव विभोर।
नहीं भूल सकते कभी वो वक्त, जो हमने कुंभ में गुजारा।
संगम तट पर देखा हमने, जो दिव्य, अद्भुत नजारा।
लौटते समय मन व्याकुल हुआ उस असीम आनंद से बिछुडऩे का ओर एक बार फिर पीछे मुड़कर गंगा मैया की ओर देखा, तो मन ने कहा ये केवल स्नान नहीं था, ये जीवन की उस प्यास को बुझाने का अवसर था जो आत्मा को शांति देती है। प्रयागराज के इस महाकुंभ ने साबित कर दिया कि आस्था के आगे हर बाधा छोटी पड़ जाती है।
लौटते समय मन ने बस यही कहा-गंगा मैया का आशीर्वाद सदा बना रहे, अगली बार फिर इसी आस्था के साथ लौटूंगा…!

हर हर गंगे…! नमामि गंगे…
(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार)

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