दीपावली 31 अक्टूबर को, काशी-उज्जैन में भी इसी दिन मनेगी

दीपावली 31 अक्टूबर को, काशी-उज्जैन में भी इसी दिन मनेगी
इंदौर। दीपावली घर को पवित्र, गांव को पवित्र और मन को पवित्र बनाने का त्योहार है। इस बार 31 अक्टूबर को अमावस्या तिथि प्रदोष काल से पूरी रात मिल रही है, जो दीपावली के लिए शास्त्रों में श्रेष्ठ बताई गई है। इसीलिए दीपावली पर्व और महालक्ष्मी पूजन 31 अक्टूबर को किया जाना शास्त्र सम्मत है।

एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने शनिवार को यह बात कही। डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने बताया अमावस्या प्रदोष काल से आधी रात तक रहने वाली श्रेष्ठ होती है। यदि वह आधी रात न रहे तो प्रदोष व्यापिनी लेना चाहिए। व्रत परिचय के पृष्ठ 139 के अनुसार 1 नवंबर को अमावस्या तिथि प्रदोष काल के आसपास ही समाप्त हो रही है। इसलिए पूरे भारत में 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाई जाएगी। पूरी दुनिया और हमारे देश में काशी और उज्जैन ज्योतिष के प्रमुख केंद्र हैं। यहां के प्रामाणिक संस्थानों और ज्योतिर्लिंग मंदिरों में 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाई जाएगी।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के अनुसार भी 31 अक्टूबर को दीपावली

महाराजश्री ने कहा कि काशी के विद्वानों ने भी गणितीय मान्यों, धर्मशास्त्रीय वचनों, दृश्य पारंपरिक मतों के आधार पर सर्वसम्मति से देशभर में 31 अक्टूबर को दीपावली मनाने को शास्त्रोचित बताया है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय ( एसवीडीवी) के ज्योतिष विभाग में 15 अक्टूबर को श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद और श्री काशी विद्वत परिषद बनारस के पंचागकारों, धर्म शास्त्रियों और ज्योतिर्विदों ने विभिन्न बिंदुओं पर विचार-विमर्श करने के बाद सर्व सम्मति से 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाने का निर्णय दिया है। बीएचयू विश्व पंचांग के समन्वयक प्रो. विनय कुमार पांडे और काशी विद्वत परिषद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रो.रामचंद्र पांडे ने भी कहा है कि पारंपरिक गणित से निर्मित पंचांगों में कोई भेद नहीं है। सभी पंचांगों में अमावस्या तिथि का आरंभ 31 अक्टूबर को सूर्यास्त से पहले होकर 1 नवंबर को सूर्यास्त के पूर्व ही समाप्त हो रहा है। इसलिए 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाया जाना उचित है।

महाकाल मंदिर में भी 31 अक्टूबर को ही मनेगी दीपावली

डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने कहा कि उज्जैन के विद्वान भी पूर्व में 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाने का शास्त्र निर्णय ले चुके हैं। शास्त्रों के अनुसार दीपावली की तिथि के निर्णय के लिए मुख्य प्रदोष काल में अमावस्या का होना आवश्यक है। देश के किसी भी भाग में एक नवंबर को पूर्ण प्रदोषकाल में अमावस्या नहीं है। इस कारण 1 नवंबर को दीपावली मनाना शास्त्रोचित नहीं है।

विज्ञान सम्मत है दीप पर्व

महाराजश्री ने कहा कि दीपावली का त्योहार विज्ञान सम्मत और स्वास्थ्य से जुड़ा है। चातुर्मास में वर्षा ऋतु होने के कारण घरों में सीड़न उत्पन्न होती है। इसके कारण संक्रामक कीटाणु जन्म ले लेते हैं। इसीलिए घरों की साफ-सफाई कर स्वच्छ और सुशोभित करके विविध प्रकार का गायन-वादन, नर्तन और संकीर्तन किया जाता है। लोक प्रसिद्धि में प्रज्ज्वलित दीपों की पंक्ति लगा देने से और स्थान-स्थान में मंडल बना देने से दीप मालिका बनती है, इन दीपों के धुएं से कीटाणु समाप्त हो जाते हैं।

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