उज्जैन के प्रेतशिला तीर्थ की कहानी,

उज्जैन के प्रेतशिला तीर्थ की कहानी, कहते हैं- अकाल मौत वालों के मोक्ष के लिए करते हैं तर्पण; कोरोना में मौतों की वजह से संख्या बढ़ी
उज्जैन। श्राद्ध पक्ष के दौरान उज्जैन के सिद्धवट पर तर्पण का विशेष महत्व है। माना जाता है कि श्राद्ध के दौरान यहां तर्पण करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है। मान्यता है कि सिद्धवट पर एक जगह ऐसी भी है, जहां अप्राकृतिक मौत होने पर उनका तर्पण करने से मरने वाले की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। कोरोना काल में ज्यादा लोगों की मौत हुई है। उनके परिजन यहां तर्पण आ रहे हैं, इसलिए आने वालों की संख्या यहां ज्यादा है।

पं. द्वारकेश व्यास ‘गांधीजी’ कहते हैं कि ये स्थान चिन्हित तो नहीं है, लेकिन उत्तर दिशा में है। सिद्धवट मंदिर के उत्तर व दक्षिण दिशा में शिप्रा नदी के किनारे घाट बना दिए गए हैं, इसलिए यहां प्राचीन शिला नजर तो नहीं आती, पर उसकी एक जगह निर्धारित मानकर पूजा-अर्चना जरूर की जाती है। सिद्धवट जिसे मां पार्वती ने लगाया था, उसके उत्तर दिशा में एक शिला है जिसे प्रेतशिला तीर्थ के नाम से जाना जाता है।

प्रेतशिला तीर्थ पर पितरों के निमित्त श्राद्ध व तर्पण किया जाता है। पं. व्यास कहते हैं सिद्धवट के दो और नाम भी हैं। यहां तारकासुर ने कार्तिकेयन का वध करने के लिए शक्ति छोड़ी थी। वो शक्ति इसी प्रेतशिला से पाताल लोक में गई थी, इसलिए इसे शक्तिभेद तीर्थ भी कहते हैं। यहीं पर मां पार्वती ने कार्तिकेयन का मुंडन संस्कार भी कराया था, इसलिए इसे भद्र जटा तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है।

यह है मान्यता
पं. व्यास ने कहा- प्रेत आत्मा ऐसे लोग जिनकी मृत्यु असमय में हो जाने पर, असंतुष्ट या अतृप्त पितरों की शांति के लिए यहां पिंडदान का विधान है। यहां शास्त्रों में वर्णित नागबलि और नारायण बलि पूजा की जाती है। इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं।

कई फिल्मी और राजनीतिक हस्तियां भी आ चुकीं
सिद्धवट पर तर्पण और श्राद्ध के लिए संगीतकार श्रवण कुमार, अन्नू कपूर, दलेर मेहंदी, कुमार शानू, पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा की पुत्री, हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई सहित सैकड़ों हस्तियां आ चुकी हैं। सभी ने अपने परिजनों व पितरों की आत्मा की शांति के लिए यहां तर्पण व श्राद्ध कराए हैं।
कोरोना का असर
सिद्धवट घाट पर कोरोना का कोई असर नहीं है। कई लोगों की मृत्यु कोरोना काल में हुई है। ऐसे लोगों की मृत आत्मा की शांति के लिए यहां तर्पण और श्राद्ध भी किए जा रहे हैं। पंडितों का कहना है यहां हर साल जितनी ही भीड़ आ रही है। यह जरूर है कि पंडित सभी को कोरोना गाइडलाइन का पालन करने को कह रहे हैं। मास्क और सैनिटाइजर का उपयोग करने की सलाह भी दे रहे हैं।

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