मुंबई की कोर्ट का अनूठा फैसला:शख्स पर गाड़ी चढ़ाने वाले को किया बरी, दिखाई नरमी
मुंबई। मुंबई के विले पार्ले इलाके में रहने वाले एक 32 वर्षीय शख्स ने साल 2012 में अपनी कार से एक व्यक्ति को कुचल दिया था। इलाज के बाद उस व्यक्ति की मौत हो गई। मामला मुंबई की मजिस्ट्रेट कोर्ट में पहुंचा और आरोपी पर लापरवाही से गाड़ी चलाने का दोष साबित हो गया। हालांकि, अदालत ने पाया कि आरोपी हर सुनवाई पर समय से कोर्ट में पेश हुआ और उसका अदालत में व्यवहार भी अच्छा था। जिसके बाद कोर्ट ने दोषी सिद्ध हो जाने के बावजूद उसे रिहा कर दिया।
आरोपी सलमान भालदार ने अदालत को यह भी बताया कि उसकी हाल ही में शादी हुई है, उसके ऊपर परिवार की जिम्मेदारी है और वह पहली बार किसी गलती से किसी क्राइम से जुड़ा है। उसने बताया कि पीड़िता एक बेंच पर बैठी थी, जब वह गंभीर रूप से घायल हो गई थी। सलमान भालदार को लापरवाही और तेज गति से गाड़ी चलाने और गैर-इरादतन हत्या का दोषी ठहराया गया था। अदालत में यह भी साबित हुआ कि दुर्घटना के दौरान आरोपी के पास लाइसेंस भी नहीं था।
अदालत ने इस आधार पर बरी किया
फैसला सुनाते हुए मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट सीपी काशीद ने कहा,’रोजानामा के पूरे रिकॉर्ड से पता चलता है कि आरोपी हर सुनवाई की तारीख में लगातार अदालत में मौजूद रहा है। आरोपी को उस अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है जो मौत की सजा या आजीवन कारावास के लिए दंडनीय नहीं है। इसलिए, मैं आरोपी को ‘प्रोबेशन ऑफ ऑफेंडर्स एक्ट’ का लाभ देना चाहता हूं।’
कानून में अच्छा व्यवहार करने वाले को रिहा करने का प्रावधान
बता दें कि प्रोबेशन ऑफ ऑफेंडर्स एक्ट में एक आरोपी या दोषी को सजा काटने के बजाय अच्छे व्यवहार पर रिहा किया जा सकता है। हालांकि, अच्छे व्यवहार और शांति बनाए रखने से संबंधित अदालत की शर्तों का उल्लंघन करने पर आरोपी को जेल जाना भी पड़ सकता है। मजिस्ट्रेट सीपी काशीद ने कहा,’उसे सजा देने के बजाय, 10,000 रुपये के बांड पर रिहा किया जा रहा है। हालांकि, उसे एक साल के दौरान अदालत द्वारा बुलाने पर आना होगा और इस दौरान अपना व्यवहार भी अच्छा रखना होगा।’
दोषी को दो साल की सजा हो सकती थी
मजिस्ट्रेट ने यह भी बताया कि इस केस में अधिकतम सजा दो साल की कैद थी। अदालत ने आरोपी को पीड़ित के बेटे महेश पाटकर को पांच हजार रुपये मुआवजा देने का भी निर्देश दिया। अदालत में इस केस के चश्मदीद ने बताया कि 26 नवंबर 2012 को शाम करीब साढ़े सात बजे जब वह परिसर में दो इमारतों के बीच में थे, तभी सामने से एक कार आई और कंक्रीट की बेंच पर बैठे लक्षमण पाटकर से जा टकराई। उन्होंने कहा कि इसमें पीड़ित की कोई गलती नहीं थी। लोग हर शाम यहां बैठते थे। गवाह ने कहा कि उसने पाटकर को एक्सीडेंट के बाद चिल्लाते हुए सुना।