फौज के चहेते रहे इमरान अपनी हरकतों से मुश्किलों में फंसे
इस्लामाबाद। बात पिछले महीने की है। माइक्रोसॉफ्ट के फाउंडर बिल गेट्स पाकिस्तान दौरे पर आए थे। इमरान खान से मुलाकात की। मुलाकात के बाद एक स्पेशल डिनर ऑर्गेनाइज किया गया। इसके कई फोटो ऑफिशियली जारी किए गए। अमूमन ऐसा हर देश में किया जाता है, लेकिन एक फोटो पर सबकी नजरें ठहर गईं। दरअसल, डिनर के लिए जो राउंड टेबल रखी गई थी, उसके चारो तरफ कुल 13 कुर्सियां थीं। इन पर 12 लोग तो नजर आ रहे थे, लेकिन 13वें शख्स की चेयर खाली थी।
सोशल मीडिया पर यह सवाल गर्दिश करता रहा कि वो कुर्सी हकीकतन खाली थी, या फिर दिखाई गई। पाकिस्तान के कई जर्नलिस्ट्स ने दावा किया कि कुर्सी खाली थी नहीं, बल्कि फोटोशॉप के जरिए उसे खाली दिखाया गया। उस कुर्सी पर ISI चीफ लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम थे। अंजुम को यह पसंद नहीं कि मीडिया में उनका जिक्र तक हो, फोटो आना तो दूर की बात है। लिहाजा, इसे खाली दिखाया गया।
4 महीने पहले शुरू हुआ ड्रामा
‘ब्लूमबर्ग’ ने पाकिस्तान की सियासत और फौज के रोल पर स्पेशल रिपोर्ट पब्लिश की है। इसके मुताबिक पाकिस्तान का सियासी ड्रामा चार महीने पहले शुरू हुआ था। तब आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा ने नदीम को ISI का नया चीफ अपॉइंट किया था। उस वक्त इमरान के बेहद करीबी जनरल फैज हमीद इस पद पर थे। इमरान उन्हें हटाना नहीं चाहते थे, लिहाजा उन्होंने नदीम की नियुक्ति लटकाए रखी। बाजवा और इमरान के बीच कई हफ्ते तनातनी चली, लेकिन बाजवा को जीतना था, और वो जीते भी। नदीम अंजुम ISI के DG अपॉइंट कर दिए गए।
फौज और इमरान के रिश्ते
पाकिस्तान के इतिहास में करीब आधा वक्त सैन्य शासन रहा। फौज और सियासतदानों के बीच मतभेद और विवाद भी हुए। इमरान को तो फौज का मोहरा माना जाता रहा। विपक्ष ने उन्हें इसी वजह से इलेक्टेड के बजाय सिलेक्टेड प्राइम मिनिस्टर कहा। खान ने अवाम से नया पाकिस्तान देने का वादा किया। 2017 में नवाज शरीफ ने खुलेआम कहा कि उन पर करप्शन के आरोप और फर्जी सबूत जनरल फैज हमीद ने ही तैयार किए हैं।
जहां तक ISI चीफ की नियुक्ति की बात है तो संविधान के मुताबिक आर्मी चीफ के कहने पर प्रधानमंत्री उसे अपॉइंट करता है। पाकिस्तानी सियासतदान रैलियों या पब्लिक प्लेटफॉर्म्स पर फौज का जिक्र नहीं करते, इमरान ने यह परंपरा तोड़ी और एक नहीं, कई बार फौज का जिक्र सियासी रैलियों में किया।
फौज को सियासत में घसीटना बड़ी गलती
कराची यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल रिलेशन्स की हेड रह चुकीं शाइस्ता तबस्सुम कहती हैं- इमरान सरकार का सबसे बड़ा गुनाह यह है कि उसने फौज का पॉलिटिकल और पब्लिक प्लेटफॉर्म्स पर इस्तेमाल किया। इमरान और उनके मंत्री लगातार यह काम करते रहे। वो विपक्ष और दुनिया को यह दिखाना चाहते थे कि उन्हें फौज का फुल सपोर्ट हासिल है।
बहरहाल, हालात अब बदल गए हैं। इमरान के खिलाफ विपक्ष एकजुट है। हालांकि इमरान जाते भी हैं तो कोई हैरानी नहीं क्योंकि मुल्क के 75 साल के इतिहास में कोई भी प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है। अगर इमरान की कुर्सी बच जाती है तो राजनीतिक अस्थिरता खत्म नहीं होगी। यह भी देखना होगा कि पाकिस्तान चीन और रूस के पाले में ही रहता है या फिर दोबारा अमेरिका और यूरोप के कैम्प में चला जाएगा।
मिलिट्री न्यूट्रल
बिल गेट्स के लंच में जो फोटो वाला मामला हुआ, उससे लगता है कि फौज अब न्यूट्रल हो चुकी है। इसका मतलब यह है कि इमरान को अब आर्मी का सपोर्ट नहीं रहा। पिछले साल भी एक अविश्वास प्रस्ताव इमरान के खिलाफ लाया गया था। तब फौज ने मदद की थी, इमरान बच गए थे। हालात यहां तक रहे कि टीवी पर भी इमरान की आलोचना फौज को बर्दाश्त नहीं थी। फौज कहती है कि उसने 2018 के इलेक्शन्स में इमरान की मदद नहीं की थी।
सच्चाई ये है कि इमरान सरकार के हर सूबे या हर डिपार्टमेंट में आर्मी का दखल रहा। जनरल एडमिनिस्ट्रेशन से लेकर फॉरेन पॉलिसी और इकोनॉमी सेक्टर में बाजवा और उनके दूसरे अफसर सीधे मीटिंग्स के जरिए दखलंदाजी करते रहे।
अब बिगड़ गए हैं रिश्ते
फौज और इमरान के रिश्ते काफी हद तक बिगड़ चुके हैं। इमरान फौज के ट्रांसफर-पोस्टिंग में दखलंदाजी कर रहे हैं। एक अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान को फॉरेन पॉलिसी बैलेंस करनी चाहिए। चीन पर निर्भरता कम करना भी जरूरी है। जो बाइडेन के सत्ता में आने के बाद से अमेरिका-पाकिस्तान के रिश्ते बुरे दौर से गुजर रहे हैं। वॉल स्ट्रीट जनरल के पत्रकार डेनियल पर्ल की 2002 में पाकिस्तान में हत्या कर दी गई थी। बाइडेन पिछले साल जब प्रेसिडेंट बने तो उसी वक्त पाकिस्तान की कोर्ट ने पर्ल के चारों हत्यारों को बरी कर दिया। अमेरिका इससे भड़क गया। ओसामा बिन लादेन वाला मामला भी व्हाइट हाउस में आज तक डिस्कस किया जाता है।
बाइडेन ने फोन तक नहीं किया
पिछले साल अप्रैल में क्लाइमेट समिट हुई। बाइडेन ने इसमें इमरान को न्योता नहीं दिया। डेमोक्रेसी समिट में इमरान शामिल ही नहीं हुए। तालिबान ने जब अफगानिस्तान पर कब्जा किया तो इमरान ने कहा- अफगानों ने गुलामी की जंजीरें तोड़ दीं। खान चीन और रूस के पाले में जाते रहे। रूस-यूक्रेन जंग के दौरान उन्होंने मॉस्को में व्लादिमिर पुतिन से मुलाकात की।
माना जा रहा है कि इमरान सरकार गिरती है तो शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री बनेंगे। तब शायद अमेरिका और यूरोप से पाकिस्तान के रिश्ते सुधरें। 1999 में फौज ने शहबाज के बड़े भाई नवाज की सरकार का तख्तापलट किया था।
इमरान की लोकप्रियता कम हुई
पिछले महीने हुए गैलप के एक सर्वे में कहा गया था कि 2018 में इमरान की लोकप्रियता 40% थी। अब यह 36% है। वहीं नवाज शरीफ उनसे कहीं आगे 55% पर खड़े हैं। खैबर पख्तूनख्वा के लोकल इलेक्शन में उनकी पार्टी को करारी शिकस्त मिली। मुल्क आर्थिक तौर पर तबाही के रास्ते पर है। IMF से 6 अरब डॉलर का कर्ज मांगा जा रहा है। एक अरब डॉलर मिल भी गए हैं। अगर सरकार बचती है तो अगले चुनाव अगस्त 2023 में होंगे।
लाहौर में रहने वाले पॉलिटिकल एनालिस्ट हसन असकरी रिजवी कहते हैं- एक सवाल यह है कि अगर इमरान सरकार बच गई तो क्या वो जनरल बाजवा को एक और एक्सटेंशन देंगे? या फिर अपने करीबी जनरल फैज हमीद को आर्मी चीफ बनाएंगे। अगर ऐसा हुआ तो नया विवाद खड़ा हो जाएगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि इमरान खुद अपने कामों की वजह से मुश्किल में फंसे हैं।