बैतूल की बेटी डॉ. सोनल काले अमेरिका में मलेरिया की वैक्सीन की करेगी रिसर्च
बैतूल। गांव की बेटियां भी हर क्षेत्र में अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ रही है। इसे साबित बैतूल के कोलगांव की एक बेटी ने किया। जो अब अमेरिका में मलेरिया में वैक्सीन टारगेट पर रिसर्च करेगी। दुनिया मे मलेरिया का कोई वैक्सीन न होना और देश मे मलेरिया की खौफनाक त्रासदी उसकी रिसर्च का कारण बनी है।
बैतूल के कोलगांव हायर सेकंडरी स्कूल में प्रिंसिपल दिलीप काले और संस्कृत की शिक्षिका उषा काले की बेटी डॉ. सोनल 21 मार्च को अमेरिका जाएगी। जहां वे दो साल मलेरिया वैक्सीन टारगेट पर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ में लेबोरेटरी ऑफ मलेरिया इम्यूनोलॉजी एंड वैक्सिनोलॉजी पर दो साल रिसर्च करेगी। वापसी के बाद वे देश मे मलेरिया नियंत्रण और उससे होने वाली मौतों पर नियंत्रण के लिए काम करेंगी। सोनल के मुताबिक देश मे मलेरिया की मृत्यु दर ज्यादा है। अभी इसका कोई वैक्सीन नहीं है। इसी समस्या को लेकर उन्होंने पीएचडी में इसे अपना विषय चुना था। इसी पर वे आगे भी रिसर्च जारी रखेगी।
हिंदी माध्यम से की पढ़ाई
सोनल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हिंदी माध्यम स्कूलों से ही की। प्रायमरी और मिडिल शिक्षा जहां उन्होंने गायत्री स्कूल से पूरी की तो हाइस्कूल और हायर सेकंडरी सरस्वती स्कूल बैतूल और एक्सीलेंस में पूरा किया। आईएचई उत्कृष्ट महाविद्यालय भोपाल से कैमिस्ट्री ऑनर्स करने के बाद सोनल ने जीवाजी वि.वि ग्वालियर से बायो मेडिकल टेक्नालॉजी में एमएससी की। बस फिर उन्होंने मुड़कर पीछे नही देखा। राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान केंद्र आईसीएमआर दिल्ली से उन्होंने मलेरिया वैक्सीन टारगेट पर केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की गाइड जेम कार्टन के निर्देशन में पीएचडी की। यही उन्हें सीनियर रिसर्च फेलोशिप भी मिली। ICMR में सोनल ने एक साल की फेलोशिप भी की। इसके बाद जबलपुर में रिसर्च एसोसिएट के पद पर काम भी किया। इतनी सारी उपलब्धियां हासिल करने पर वे सारा श्रेय शिक्षक माता पिता को देती है। जिनसे उन्होंने यह सब कुछ सीखा। तभी तो वे भारत लौटकर प्रोफेसर के तौर पर बच्चो को मार्गदर्शन देने का स्वप्न संजोए हुए हैं।
लक्ष्य बनाए ,हार न माने
स्वभाव से जिद्दी सोनल बताती है कि जिसका जो लक्ष्य है उसे अपना गोल बनाए। उनके लिए भी पीएचडी आसान नहीं थी। लेकिन उन्होंने इसे अपना लक्ष्य बनाया। अपने नाम के आगे डॉक्टर लगाने का सपना था। उसे पूरा करने हार नहीं मानी। कंपीटिशन अंग्रेजी माध्यम छात्रों से था तो उसे सीखने पूरा मनोयोग लगा दिया। वे कहती है कि छात्र मातृभाषा को वरीयता देते हुए इंग्लिश को महत्व दे ताकि हम वैश्विक परिदृश्य में टिके रह सके।
ऐसे आए इस फील्ड में
पीएचडी या साइंटिस्ट बनना है तो बिना दृढ़ संकल्प और मेहनत के कुछ नहीं होगा। बायो मेडिकल टेक्नोलॉजी में जाने के लिए नेशनल एंट्रेंस टेस्ट NET दें। जिससे पीएचडी के लिए प्रवेश लिया जा सकता है। इसमे विषय का चुनाव करें।धारणाओं को बदलना होगा।
पिता दिलीप काले के मुताबिक उन्हें बेटी की कामयाबी पर गर्व होता है। वे बताते हैं कि एक शिक्षक होते हुए उन्होंने हमेशा बेटियों को ज्यादा कर आता है। हमेशा प्रयास किया है कि पुरानी धारणाओं को बदलना होगा। कभी संकोच नहीं करना होगा हिम्मत जुटाते हुए बेटियों को आगे बढ़ाना होगा सोना सोनल की शिक्षिका माता कहती हैं कि बेटियों के लिए मां-बाप को हिम्मत करना होगा। तभी बेटियां आगे बढ़ेगी उन्हें अपनी बेटी हो या कोई छात्र सभी की कामयाबी पर बराबर की खुशी होती रही है।