भारत की राजनीति में एक बार फिर टीपू सुल्तान की एंट्री

भारत की राजनीति में एक बार फिर टीपू सुल्तान की एंट्री
5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले देश की राजनीति में एक बार फिर से मैसूर के सम्राट टीपू सुल्तान की एंट्री हो गई है। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए अपनी जान देने वाले टीपू सुल्तान के नाम पर अब दो धर्मों के लोग आपस में लड़ रहे हैं। दरअसल, कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र सरकार के मंत्री असलम शेख ने कहा कि मुंबई में बने स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का नाम टीपू सुल्तान के नाम पर होगा।
इसी के बाद विरोध करते हुए बजरंग दल और भारतीय जनता पार्टी के नेता सड़क पर उतर गए हैं। देश में कई जगहों पर टीपू सुल्तान के विरोध में आंदोलन हो रहे हैं।
ऐसे में हम जानते हैं कि टीपू सुल्तान के नाम पर अभी विवाद होने की वजह क्या है? टीपू सुल्तान कौन हैं? आखिर टीपू सुल्तान के नाम से BJP क्यों चिढ़ती है? अंग्रेजों से लड़ने वाले टीपू को लोग जिहादी क्यों कहते हैं? इससे पहले कब और कितनी बार टीपू सुल्तान के नाम पर विवाद हुआ है?
अभी टीपू सुल्तान के नाम पर अचानक से विवाद क्यों?
मुंबई में मलाड नाम की एक जगह है। मलाड इलाके में मुस्लिम धर्म को मानने वाले ज्यादा लोग रहते हैं। इसी क्षेत्र से विधायक बनकर असलम शेख महाराष्ट्र सरकार में मंत्री बने हैं। असलम ने अपने विधायक फंड से अपने क्षेत्र में एक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स बनवाया है। अब वह इस कॉम्प्लेक्स का नाम टीपू सुल्तान के नाम पर रखना चाहते हैं।
इस कॉम्प्लेक्स के नाम पर बजरंग दल और भाजपा नेताओं ने कड़ी आपत्ति जताई है। पूर्व CM और नेता विपक्ष देवेंद्र फडनवीस ने कहा,’हम ऐसे व्यक्ति के नाम पर मैदान का नाम नहीं रखने देंगे, जो बड़ी संख्या में हिंदुओं की मौत के लिए जिम्मेदार है।’ इस तरह 5 राज्यों में चुनाव से पहले अब एक बार फिर से टीपू की एंट्री भारतीय राजनीति में हो गई है।
महाराष्ट्र में टीपू सुल्तान के नाम पर आरोप-प्रत्यारोप
2015 में महाराष्ट्र की राजनीति में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM की एंट्री होती है। राज्य में ओवैसी की पार्टी ने मुस्लिम युवाओं के बीच टीपू सुल्तान को आदर्श के तौर पर स्थापित करने का काम किया। 17वीं सदी के मुस्लिम शासक टीपू सुल्तान की प्रशंसा में बड़ी संख्या में तस्वीरें बांटी गईं। इसके जरिए भारत में मुसलमानों के योगदान और इतिहास को दिखाने का प्रयास किया गया।
इस मामले में कांग्रेस और AIMIM की सक्रियता को देखते हुए अब भाजपा भी सक्रिय हो गई है। भाजपा ने आरोप लगाया है कि महाराष्ट्र के मालवानी में हिंदुओं को इलाका छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इसके लिए टीपू सुल्तान के नाम और प्रतीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। महाअघाड़ी के नेताओं ने इस मामले में कहा है कि BMC चुनाव और 5 राज्यों के चुनाव को देखते हुए भाजपा नेता वोट को धर्म के नाम पर बांट रहे हैं।
कौन हैं टीपू सुल्तान?
20 नवंबर 1750 की बात है। कर्नाटक के देवनाहल्ली में मैसूर के शासक हैदर अली खां के घर एक बच्चे का जन्म हुआ है। हैदर ने अपने बेटे का नाम सुल्तान फतेह अली खान शाहाब रखा था। बाद में इसी बच्चे को टीपू सुल्तान के नाम से जाना गया।
हैदर अली की मौत के बाद बेटा टीपू सुल्तान 1761 में मैसूर का शासक बना था। विवादों में होने के बावजूद टीपू सुल्तान को न सिर्फ एक अच्छे शासक, बल्कि योद्धा के तौर पर भी जाना जाता है। BBC को दिए इंटरव्यू में कर्नाटक के डॉक्टर चिदानंद मूर्ति ने टीपू सुल्तान को बेहद चालाक शासक बताया है।
कई मंदिरों को बनवाने के साथ उनकी सुरक्षा का भी ध्यान रखते थे टीपू सुल्तान
टीपू सुल्तान को मैसूर के बहादुर शासक के रूप में जाना जाता है। उनके पराक्रम को देखते हुए उनके पिता ने उन्हें शेर-ए-मैसूर कहा था। टीपू सुल्तान को कुछ लोग बहादुर देशभक्त बताते हैं तो वहीं कुछ लोग उनको सांप्रदायिक शासक बताते हैं। मैसूर में हिंदू बहुमत में थे। इसलिए टीपू सुल्तान ने श्रीरंगपट्टनम, मैसूर समेत राज्य के कई स्थानों में कई मंदिर बनवाए।
इतिहासकार टीसी गौड़ा ने अपने एक इंटरव्यू में कहा है कि टीपू ने श्रिंगेरी, मेल्कोटे नांजनगुंड, सिरीरंगापटनम, कोलूर जैसे मंदिरों के जवाहरातों को सुरक्षा मुहैया करवाई थी। 1759 में आदि शंकराचार्य के बनाए तिरुपति मंदिर पर मराठों ने हमला कर दिया था तो हिंदुओं की धार्मिक भावना को देखते हुए टीपू सुल्तान ने इसका निर्माण करवाया था।
इस वजह से टीपू सुल्तान को बताया जाता है हिंदुओं का हत्यारा
1990 तक सरकारी स्कूलों में देशभक्त राजा के तौर पर टीपू सुल्तान को पढ़ाया जाता था, लेकिन 1990 के दौर में जब मंदिर-मस्जिद मामला उठा। राजनीति में धार्मिक घोलमेल बढ़ा, तो इसी दौरान टीपू सुल्तान की छवि एक धर्मनिरपेक्ष शासक के बजाय मुस्लिम तानाशाह की बना दी गई। टीपू सुल्तान पर लिखी गई किताब में चिदानंद मूर्ति कहते हैं, ‘वे बेहद चालाक शासक थे। उन्होंने मैसूर में हिंदुओं पर कोई अत्याचार नहीं किया, लेकिन तटीय क्षेत्र जैसे मालाबार में हिंदुओं पर उन्होंने काफी अत्याचार किए।’
इतिहास में बताया गया है कि टीपू सुल्तान ने 1783 में पालघाट किले पर हमला कर हजारों ब्राह्मणों का कत्लेआम किया था। इससे हिंदुओं के मन में टीपू सुल्तान के खिलाफ डर भर गया था। हालांकि एक इंटरव्यू में इतिहासकार प्रोफेसर बी शेख अली कहते हैं कि यह सबकुछ इतिहास से अधिक वर्तमान राजनीतिक माहौल से प्रभावित है।
अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गए थे टीपू सुल्तान
2014 गणतंत्र दिवस परेड में टीपू सुल्तान को एक अदम्य साहस वाला महान योद्धा बताया गया था। ऐसा इसलिए क्योंकि टीपू सुल्तान ने 18वीं सदी में दक्षिण भारत में अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब दिया था। हैदर अली और उनके बेटे टीपू ने एक नहीं, कई बार अंग्रेजों काे घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया था। कई बार अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान से मेल-मिलाप भी करना चाहा था, लेकिन वो सफल नहीं हुए।
अंग्रेजों से मंगलौर की संधि भी हुई, लेकिन जब अंग्रेज अपने वादों से मुकरे तो 1799 में दोनों के बीच जमकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में टीपू सुल्तान की सेना के बड़े अधिकारी मीर सादिक अंग्रेजों से मिल गए। इसी वजह से करीब तीन महीने की लड़ाई के बाद युद्ध के मैदान में अंग्रेजों से लड़ते हुए टीपू सुल्तान शहीद हो गए थे। मेजर एलेक्जेंडर ऐलन ने बाद में इस युद्ध का जिक्र करते हुए किताब में लिखा था कि टीपू सुल्तान के मरने के बाद भी अंग्रेज सैनिक उनके शरीर को छूने से डर रहे थे।
BJP टीपू सुल्तान के नाम से इतना ज्यादा क्यों चिढ़ती है?
टीपू सुल्तान के नाम पर लंबे समय से भाजपा को ऐतराज है। कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार ने 10 नवंबर को टीपू सुल्तान के जन्मदिन पर सरकारी कार्यक्रम के आयोजन की घोषणा की, तो भाजपा ने जमकर विरोध किया।
इस मामले में संघ विचारक और राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने इंटरव्यू में कहा था कि टीपू सुल्तान ने हिंदुओं को मुस्लिम बनाने के साथ ही बड़ी संख्या में हिंदुओं का कत्लेआम किया था। उन्होंने कई मंदिर तोड़े और हिंदू महिलाओं की इज्जत को लूटा। इसलिए संघ और भाजपा टीपू सुल्तान का विरोध करती हैं। वहीं, चुनाव से ठीक पहले टीपू सुल्तान के मुद्दे को उठाए जाने पर सवाल उठता है कि क्या हर पार्टी अपने फायदे के लिए इस मुद्दे को उठाती है? ‘द हिंदू’ में लिखे अपने लेख में अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर चंदन गौड़ा कहते हैं कि राजनीतिक लाभ के लिए हर दल इस तरह के मुद्दे को उठाता है।

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