अखिलेश की बातों में छुपा था करहल का संकेत
उत्तर प्रदेश। सीएम योगी आदित्यनाथ के बाद अब सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी चुनावी मैदान में उतरने के लिए तैयार हैं। वे मैनपुरी की करहल सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां तीसरे चरण में चुनाव होने हैं। योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर से लड़ने की घोषणा के बाद से यह कयास लगाए जा रहे थे कि अखिलेश भी विधान परिषद के बजाय विधानसभा चुनाव में उतरेंगे। पहले यह चर्चा थी कि वह अपनी मौजूदा संसदीय सीट आजमगढ़ की गोपालपुर सीट से उतर सकते हैं। मगर अखिलेश ने पिछले दिनों एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सिर्फ एक लाइन से चर्चाओं का रुख बदल दिया था। चुनाव लड़ने के सवाल पर उन्होंने कहा था- हो सकता है मैं योगी आदित्यनाथ से पहले चुनाव लड़ूं। आजमगढ़ जिले की सीटों पर चुनाव सातवें चरण में होगा, जबकि गोरखपुर जिले की सीटों पर छठे चरण में। अखिलेश की घोषणा से यह साफ हो गया था कि वे आजमगढ़ की किसी सीट से नहीं उतरेंगे। इटावा और मैनपुरी भी यादव परिवार के लिए हमेशा से सुरक्षित क्षेत्र रहा है। यहां चुनाव भी तीसरे चरण में होने हैं।
1993 से चला सपा का रथ 2002 में जिस भाजपाई ने रोका…अगले चुनाव में वह सपा के हो गए
मैनपुरी की करहल सीट पर 1993 से सपा जीतती आ रही थी। 2002 में सोबरन सिंह यादव ने भाजपा के टिकट पर लड़ते हुए सपा का विजय रथ रोक दिया था। उस चुनाव में सपा के अनिल कुमार यादव दूसरे स्थान पर रहे थे। मगर 2007 के चुनाव में सोबरन सिंह यादव सपा के टिकट पर ही चुनाव में उतरे। तब से लगातार वह सपा के टिकट पर यहां विधायक हैं।
सैफई के करीब है करहल, मुलायम का प्रभाव क्षेत्र है
करहल विधानसभा क्षेत्र सैफई के बिल्कुल करीब है। यहां मुलायम सिंह यादव का काफी दखल रहा है। विधायक सोबरन सिंह यादव पर भी मुलायम का ही हाथ माना जाता रहा है। इस सीट पर यादव परिवार का दबदबा ऐसा है कि 2017 की मोदी-योगी लहर में भी इस सीट पर सोबरन सिंह यादव को 49.81% वोट मिले थे।
1957 से अब तक सिर्फ एक बार भाजपा जीती है यहां
करहल विधानसभा सीट का इतिहास बताता है कि 1957 से अब तक यहां सिर्फ एक बार 2002 में भाजपा जीती है। 1980 में यह सीट एक बार कांग्रेस के खाते में भी गई है। 1957 के पहले चुनाव में यहां प्रजा सोशलिस्ट पार्टी जीती थी। उस समय यहां दो सीटें हुआ करती थीं। 1985 से 2002 तक यहां बाबू राम यादव विधायक रहे। खास बात ये है कि वे 1985 से 1989 तक लोक दल से, 1989 से 1991 तक जनता दल से, 1991 से 1992 तक जनता दल (सेक्युलर) से और फिर 1993 से 2002 तक समाजवादी पार्टी से विधायक रहे।