सामाजिक बहिष्कार मामले में आरोपियों पर FIR दर्ज
बैतूल। बैतूल में तीन परिवारों के सामाजिक बहिष्कार के बाद पुलिस ने गांव के दो पूर्व सरपंचों पर मारपीट का मामला दर्ज किया है। पुलिस और प्रशासन अधिकारियों ने गांव पहुंच कर पीड़ित परिवार और ग्रामीणों से चर्चा की। इधर ऐसे मामलों के पीछे प्रदेश में सामाजिक बहिष्कार के अपराध पर कोई विशेष कानून का न होना बताया जा रहा है। कानून के जानकार भी इस कानून को बनाए जाने की हिमायत कर रहे हैं। मुलताई पुलिस ने पूर्व सरपंचों राजकुमार ढोढ़ी और धुन्धु देशमुख के खिलाफ महिला लीला बाई की रिपोर्ट पर धारा 294,323,506,34 के तहत 15 जनवरी को की गई मारपीट के मामले में एफआईआर दर्ज की है।
एसडीओपी नम्रता सोंधिया ने मीडिया को बताया कि गांव के लोगों पर प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की गई है। जिन लोगों ने परिवार को सामान देने से और बातचीत से मना किया था उनकी सूची बनाकर प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की गई है। उन्होंने बताया कि लोगों को समझाइश दी गई है। दोनों पक्ष एक ही समुदाय के है। सामाजिक बहिष्कार जैसा कुछ नहीं है।
समाज बहिष्कार को लेकर एमपी में नहीं है कोई कानून
आपको बता दें कि मध्यप्रदेश में सामाजिक बहिष्कार के मामले लगातार सामने आते रहे हैं। पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम लागू है लेकिन एमपी में ऐसा कोई कानून ही नहीं है। जानकार बताते है कि कानून न होने के चलते पुलिस ऐसे मामलों में कार्रवाई ही नहीं करती। पुलिस इसे सामाजिक मामला बताकर पल्ला झाड़ लेती है। कभी कभार आईपीसी की धारा 153 ए के तहत समुदाय के बीच वैमनस्यता फैलाने का मामला दर्ज कर लिया जाता है या फिर फरियादी को मानहानि का केस डालने के लिए कोर्ट जाने की सलाह दे दी जाती है। सामाजिक कार्यकर्ता मानते है कि जनप्रतिनिधि इन मुद्दों को सदन में उठाते ही नही है जिससे कानून बन सके।
एडवोकेट गिरीश गर्ग बताते हैं कि सामाजिक बहिष्कार जैसी कुरीति को रोकने के लिए अलग से कोई प्रावधान या कानून न होने की वजह से अक्सर ऐसे मामले सामने आते है। चूंकि बैतूल आदिवासी बाहुल्य जिला है। ऐसे में यहां परंपरा के नाम पर इस तरह की प्रताड़नाओं के मामले सामने आते रहते है। जिस पर यदि कानून बनाया जाता है तो पीड़ितों को जहां न्याय मिलेगा वहीं इस तरह की गतिविधियों में भाग लेने वालों में कानून का भय बनेगा।
समाजसेवी लक्ष्मी साहू की मानें तो जिले के जनप्रतिनिधियों को विधानसभा, लोकसभा में इस कुरीति के खिलाफ कानून लाने को लेकर चर्चा कराना चाहिए लेकिन वे भी इससे या तो बचते है या फिर उन्हें इस कमी या खामी की जानकारी ही नहीं है। यह सामाजिक परिवेश को बेहतर बनाने की दिशा में बड़ी कमी का द्योतक है।
क्या था पूरा मामला
मुलताई थाना इलाके के गांव पारबिरोली में तीन परिवारों का सामाजिक बहिष्कार करने के संगीन आरोपों का मामला 18 जनवरी को सामने आया था। हुक्का पानी बंद कर दिए जाने से तंग परिवार ने बैतूल पहुंच कर कलेक्टर से सुरक्षा और कार्रवाई की मांग की थी। परिवार ने गांव के पूर्व सरपंच पर मारपीट करने और घर तोड़ने का भी आरोप लगाया था। पीड़ित परिवार के मुताबिक गांव के पूर्व सरपंच ने पिछले 15 जनवरी को उनके घर पहुंच कर परिवार की महिलाओं समेत अन्य सदस्यों की पिटाई की थी। यहीं नहीं उनके घर का एक हिस्सा भी तोड़ दिया था। परिवार के मुताबिक उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया। इसमें उनके तीन परिवार शामिल हैं। उन्हें गांव की किराना दुकान से राशन देना बंद कर दिया गया। गांव की दूध डेयरी में उनके घर से निकलने वाले दूध को लेना भी बंद कर दिया। मामले को सुर्खियों में आने के बाद पुलिस और प्रशासन के अधिकारी गांव पहुंच रहे हैं।