कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य को याद दिलाया ‘इतिहास
ग्वालियर। केंद्रीय राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के रानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर माथा टेकने पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी। ग्वालियर महिला कांग्रेस की शहर जिलाध्यक्ष रुचि गुप्ता ने कहा कि वीरांगना की आत्मा को दुख पहुंचा है। समाधि स्थल को कुदरत (बारिश के जरिए) खुद शुद्ध कर देगी। या फिर हम इसे धोकर शुद्ध करेंगे। बता दें कि सिंधिया रविवार को वीरांगना की समाधि पर पहुंचे थे।
रुचि ने कहा- ‘जो लोग कल कत्ल पर हंस रहे थे, आज उस बुत पर फूल-माला चढ़ाकर हंस रहे हैं। मंसूबे तब भी वही थे, मंसूबे आज भी वही हैं। तब भी गद्दारी की थी और आज गद्दारी जनता के वोट के साथ की है। रानी लक्ष्मीबाई को तकलीफ कितनी हुई होगी, जब उनकी समाधि पर पैर रखा होगा। 1857 में सिंधिया घराने ने रानी से गद्दारी की थी। इसी घराने के मुखिया अब लक्ष्मीबाई की समाधि पर गए हैं। बताएं आज क्या जरूरत पड़ गई, वहां जाने की? क्या मजबूरी थी लक्ष्मीबाई को नमन करने की?’
रविवार, 26 दिसंबर को ज्योतिरादित्य सिंधिया एक दिन के प्रवास पर ग्वालियर आए थे। सिंधिया शाम 5.30 बजे प्रद्युम्न सिंह तोमर के साथ झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर पहुंचे थे। यह उनके तय कार्यक्रम में शामिल नहीं था। सिंधिया ने वीरांगना को पुष्पांजलि देकर नमन किया। हाथ जोड़कर माथा टेका। समाधि स्थल की परिक्रमा भी की। सिंधिया घराने को जानने वाले लोग बताते हैं कि इस तरह अचानक और सिर्फ माथा टेकने वह पहली बार ही पहुंचे हैं। जब कांग्रेस में थे, तब राहुल गांधी के साथ रोड शो करते हुए समाधि स्थल पहुंचे थे। व्यक्तिगत रूप से पहली बार ही आए हैं।
क्यों खास माना जा रहा सिंधिया का लक्ष्मीबाई की समाधि पर जाना
इतिहास के जानकार डॉ. सुशील कुमार का कहना है कि इतिहास में महारानी लक्ष्मीबाई और सिंधिया राजवंश के बीच कोई विवाद का जिक्र नहीं है। पर, साहित्य के जानकारों ने लक्ष्मीबाई और सिंधिया घराने के विवाद के बारे में बताया है। सिंधिया घराने से लक्ष्मीबाई की समाधि पर कोई नहीं जाता है, ऐसा लोगों का मानना है। कवि सुभद्रा कुमारी चौहान की वीरांगना पर लिखी गई कविता में दोनों का जिक्र किया गया है।
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेजों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार,
अंग्रेजों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।
सिंधिया के समाधि पर जाने के सियासी मायने
सिंधिया घराने के मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया साल 2020 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए। यहां उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया। सिंधिया समर्थकों को मंत्री बनाया गया, क्योंकि उनके कारण भाजपा फिर मध्य प्रदेश में सरकार में लौटी। सिंधिया के भाजपा में आने के बाद से भाजपा के हिंदू कट्टरवादी नेता उनको टारगेट करने लगे थे। साथ ही कांग्रेस भी निशाना साधती रहती थी। वीरांगना के समाधि स्थल पर जाने या आने का न्यौता दिया जाता था। अब जब इस अंदाज में सिंधिया ने वहां एंट्री की है, उससे भाजपा में अंदर के सियासी दांव-पेच को विराम मिलेगा। साथ ही यह भारतीय जनता पार्टी के सारे संस्कार पूरे करने पर सिंधिया का कोई विरोध नहीं बचेगा। इसके अलावा कांग्रेस के पास भी शुरूआती विरोध के बाद कुछ कहने के लिए नहीं रहेगा।