भगवान विष्णु द्वारा सृष्टि का कार्यभार संभालने का दिन है देव प्रबोधिनी एकादशी
हिंदू पंचांग के मुताबिक कार्तिक महीने की शुक्लपक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी का विशेष दिन है। इसे देव प्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है। इस बार पंचांग में तिथियों के समय को लेकर भेद है। इसलिए कई जगहों पर 14 तो कहीं 15 नवंबर को ये पर्व मनाया जाएगा।
पुराणों के मुताबिक आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को विष्णु जी ने शंखासुर दैत्य को मारा था। उसी दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। इसके बाद कार्तिक महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी पर भगवान विष्णु चार महीने का शयन काल पूरा करने के बाद जागते हैं। पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन से भगवान विष्णु सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं और इसी दिन से सभी तरह के मांगलिक काम भी शुरू हो जाते हैं। इसलिए इस दिन भगवान की विशेष पूजा-अर्चना का महत्व है।
दीपदान की परंपरा
देव प्रबोधिनी एकादशी पर तीर्थ स्नान-दान, भगवान विष्णु की विशेष पूजा और शालिग्राम-तुलसी विवाह के साथ ही दीपदान करने की भी परंपरा है। इन सभी धर्म-कर्म से कभी न खत्म होने वाला पुण्य मिलता है। पुराणों में बताया गया है कि कार्तिक महीने में दीपदान से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि 15 से 19 नवंबर के बीच में बैकुंठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा पर्व भी रहेंगे। इन 3 तिथियों में दीपदान से भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की विशेष कृपा मिलती है।
मंदिर में करें दर्शन, घर पर ऐसे करें पूजा
प्रात: जल्दी जागकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। निकट के किसी मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन करें, प्रसाद अर्पित करें।
घर के पूजा घर में साफ-सफाई कर पूरी शारीरिक स्वच्छता के साथ दीप प्रज्वलित करें।
भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक कर पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें। इस दिन व्रत रखने का भी बड़ा विधान है जो अपनी क्षमता के अनुरूप आप कर सकते हैं।
तुलसी विवाह की परंपरा भी है इस दिन
इस दिन भगवान विष्णु के शालग्राम अवतार और माता तुलसी का विवाह किया जाता है।
भगवान की आरती करें। उन्हें सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर रखें क्योंकि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें। इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।