शादी से पहले पता चलेगा कि होने वाली संतान में एनीमिया होगा या नहीं

शादी से पहले पता चलेगा कि होने वाली संतान में एनीमिया होगा या नहीं
मध्य प्रदेश। भोपाल के डॉक्टर ने सिकल सेल एनीमिया की पहचान के लिए खास डिवाइस तैयार किया है। इसकी मदद से महज 5 मिनट में ही बीमारी का पता चल सकेगा। इसके तहत दो कार्ड बनाए जाएंगे, जिसमें जानकारी फीड होगी। शादी से पहले लड़का और लड़की के कार्डों को मिलाकर पता चल जाएगा कि शादी के बाद होने वाली संतान एनीमिया से पीड़ित होगी या नहीं। वर्तमान में HPLC मशीन से जांच रिपोर्ट प्राप्त करने में 25 से 30 मिनट लगते हैँ।
डिवाइस को भोपाल में शासकीय होम्योपैथी कॉलेज के आदिवासी शोध विभाग के प्रोफसर डॉ. निशांत नांबीसन ने तैयार किया है। राज्य सिकल सेल मिशन के पायलेट प्रोजेक्ट के तहत 15 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसकी शुरुआत करेंगे। झाबुआ के दो आदिवासियों के ब्लड सैंपल लेकर अभियान की शुरुआत की जाएगी। केंद्र सरकार ने आत्म निर्भर भारत योजना में इस तकनीक को शामिल भी किया है। ICMR की रिपोर्ट के मुताबिक 1.53 करोड़ अनुसूचित जनजाति आबादी हैं, जिनमें से 33% आबादी के इस बीमारी से प्रभावित होने की संभावना है।
अभी तक देश में अमेरिकी तकनीक आधारित HPLC मशीनों का आयात सिकल सेल एनीमिया के निदान के लिए किया जाता है, लेकिन मशीन में बार-बार लगने वाले रेएजेंट की अधिक कीमत और उसके ट्रांसपोर्टेशन में ज्यादा लागत के कारण इस पर खर्च 10 लाख रुपए से भी ज्यादा आता है। डाॅ. नांबीसन ने जेनेटिक इन्हेरिटेंस प्रिडिक्शन कार्ड तैयार किया है। आम बोलचाल में इसे पॉकेट कुंडली कहते हैं। इसमें सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित का ब्यौरा दर्ज होगा।
जेनेटिक बीमारी है सिकल सेल एनीमिया
सिकल सेल जेनेटिक बीमारी है। सामान्य रूप में शरीर में लाल रक्त कण प्लेट की तरह चपटे और गोल होते हैं। यह रक्त वाहिकाओं में आसानी से आवाजाही कर पाते हैं, लेकिन यदि जीन असामान्य हैं, तो इसके कारण लाल रक्त कण प्लेट की तरह गोल न होकर अर्धचंद्राकार रूप में दिखाई देते हैं। इस वजह से यह रक्त वाहिकाओं में ठीक तरह से आवागमन नहीं कर पाते हैं, जिससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। इसके कारण मरीज को एनीमिया की समस्या होती है। आदिवासियों में यह रोग तेजी से पनप रहा है। सिकल सेल रोग अधिकतर उन उन इलाकों में ज्यादा होता है, जो अविकसित होते है।
ऐसे जांच की जाती है
डॉ. नांबीसन ने बताया कि यह नई जैव-रासायनिक परीक्षण तकनीक है, जो स्वदेशी रूप से विकसित पोर्टेबल पामटॉप रिचार्जेबल डिवाइस के साथ काम करता है। नई डिवाइस काफी छोटी है। इसे जेब में रखकर कहीं भी ले जाया जा सकता है। इससे जांच करने के लिए सिर्फ एक बूंद खून (5 माइक्रोलीटर) की जरूरत पड़ती है। खून को टेस्ट ट्यूब में केमिकल के जरिए डायल्‍यूट करते हैं। इस डिवाइस से स्पेक्ट्रम बनता है। सिकल सेल एनीमिया में 450 नैनोमीटर से कम का स्पेक्ट्रम बनता है। इसे प्वाइंट ऑफ केयर (POC) पर परीक्षण के लिए दूर-दराज गांव में भी आसानी से ले जाया जा सकता है।
125 रुपए में होगी जांच, अब तक लगते थे 400 रुपए
व्‍यक्‍ति के शरीर में खून नहीं बनने की बीमारी सिकल सेल एनीमिया की जांच अब सिर्फ 5 मिनट के भीतर हो जाएगी। अभी इस बीमारी की जांच एचपीएलसी से मशीन से तीन दिन में हो पा रही है। इतना ही नहीं, जांच का खर्च भी कम हो जाएगा। अभी यह जांच कराने के करीब 400 रुपए लगते हैं, जबकि नई डिवाइस से जांच 125 रुपए से कम खर्च में हो जाएगी। डॉ. निशांत नांबीसन ने इंस्टीट्यूट ऑफ इंस्ट्रूमेंटेशन एंड एप्लाइड फिजिक्स व इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बैंगलोर के शोधकर्ताओं की मदद से यह तकनीक विकसित की है।
एक कार्ड में दर्ज होगा ब्यौरा
डॉ. नांबीसन ने जेनेटिक इन्हेरिटेंस प्रिडिक्शन कार्ड तैयार किया है। इसमें सिकलसेल एनीमिया और हीमोफीलिया से पीड़ित का ब्यौरा दर्ज किया जाता है। तीन रंगों वाले इस कार्ड के चारों तरफ हरे रंग का बाॅर्डर है। जो व्यक्ति इन बीमारियों के वाहक हैं, उनके कार्ड की बॉर्डर आधी हरी और आधी लाल होगी। इसी तरह पीड़ित के कार्ड की पूरी बॉर्डर लाल होगी।
दो लाल कार्ड से नहीं होगी शादी
शादी के पहले युवक-युवती के कार्ड एक दूसरे के ऊपर रखते ही रंगों का पता चल जाएगा कि अगली पीढ़ी स्वस्थ्य होगी या बच्चे इस बीमारी के वाहक होंगे। रेड कार्ड मैच होने पर शादी को गंभीर जोखिम माना जाएगा। इससे अगली पीढ़ी में सिकलसेल एनीमिया और थैलेसीमिया होने की संभावना के चलते शादी करने से रोका जा सकेगा।
पोर्टल से भी होगा कुंडली का मिलान
डाॅ. नांबीसन ने पोर्टल भी तैयार कराया है। इसमें 11 भाषाओं में कुंडली मिलान की सुविधा उपलब्ध कराई है। जीआईपी पोर्टल में कुंडली मैच करने की सुविधा पब्लिक डोमेन में दी गई है। इसे तीन प्रकार से बांटा गया है। वेब ब्राउजर में जैंडर सिलेक्ट करने के बाद मरीज की जांच रिपोर्ट या कार्ड के अनुसार लेवल सिलेक्ट करने के बाद युवक-युवती की बीमारी का आंकलन होगा। इसके बाद पता चल जाएगा कि इस जोड़े की अगली पीढ़ी के बच्चे बीमारी से ग्रस्त होंगे या उनमें कितना फीसदी होने की संभावना है।
जनजातियों के अलावा दूसरे समुदाय में भी फैल रही है बीमारी
डाॅ. नांबीसन ने बताया कि जनजातीय क्षेत्रों में शोध के दौरान पाया गया कि बैगा, भारिया और सहरिया जनजाति के लोगों में ये बीमारी पाई जाती है। अब गोंड, मेहरा, झारिया के अलावा ओबीसी और सामान्य वर्ग के लोगों में भी ये बीमारी मिल रही है।
बदल जाते हैं ब्लड सेल
ब्लड सेल सामान्य रूप में सिक्के के आकार के होते हैं, जिससे वे आराम से प्रवाह करते हैं। सिकलसेल होने पर ब्लड सेल हंसिए जैसे हो जाते हैं। शरीर में ऑक्सीजन नहीं ले जा पाते। इस वजह से दर्द और शरीर में सूजन आने लगती है।
MP के 22 जिले सिकल सेल से प्रभावित
आलीराजपुर, अनूपपुर, बालाघाट, बड़वानी, बैतूल, बुरहानपुर, छिंदवाड़ा, धार, डिंडोरी, होशंगबाद, जबलपुर, झाबुआ, खंडवा, खरगोन, मंडला रतलाम, सिवनी, शहडोल, शिवपुरी, सीधी, सिंगरौली व उमरिया।

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