अयोध्या के कारीगर कहते हैं- दीयों से नहीं, कुल्हड़ से चल रहा जीवन

अयोध्या के कारीगर कहते हैं- दीयों से नहीं, कुल्हड़ से चल रहा जीवन
अयोध्या। तीन नवंबर को अयोध्या में पांचवीं बार दीये जलाने का गिनीज बुक रिकॉर्ड बनने जा रहा है। सरयू तट और राम की पैड़ी पर 9 लाख दीये जलाए जाएंगे। यहां जो दीये जलाए जाएंगे, वे सरयू तट से करीब 10 से 20 किमी की दूरी पर स्थित गांवों में बनाए जा रहे हैं। इसके लिए किसी गांव में कुम्हारों को 20 हजार तो किसी में एक से दो लाख तक दीये बनाने का ऑर्डर है। यहां कुम्हार दिन-रात एक करके इन दीयों को बना रहे हैं।
गांव में प्रवेश करते ही अयोध्या के महापौर ऋषिकेश उपाध्याय का घर है। आसपास के माहौल को देखकर लगता है कि यहां किसी चीज की तैयारी चल रही है। गांव से गुजरने वाली सड़क की मरम्मत कार्य चल रहा है। सड़क के दोनों ओर कुम्हारों के घर हैं। वे चाक और आंवे (जिसमें दीये को पकाते हैं) लगाकर बैठे हैं। यहां बच्चे से लेकर बूढ़े तक ऐसे दीये और अन्य मिट्‌टी के सामान बनाने में जुटे हैं। ऐसा लगता है जैसे खेतों में फसल की कटाई चल रही है। चारों तरफ लोग काम में जुटे नजर आते हैं।
यहीं पर मनोज से मुलाकात होती है, जिनके दोनों हाथ मिट्‌टी से सने हैं। दीपोत्सव के लिए कितने दीपक बनाने हैं? सवाल पर दबी जुबान और मुंह फेरते हुए मनोज बोलते हैं कि बस 10 हजार दीयों का आर्डर हमारे परिवार को मिला है। जितना ठेकेदार बोले हैं, उतना बना रहे हैं। बाकी बाजार में भी तो बेचना है।
मनोज के पिता रामकुमार प्रजापति बगल में ही आंवे की आग जलाने में जुटे हैं। यह पूछने पर कि अयोध्या में दीपोत्सव से आपकी जिंदगी में क्या बदलाव आया है? वे तपाक से बोलते हैं- कुछौ नहीं बदला है भइया। सब पहिले जइसय ही बाय (अवधी में)। न कौनों फर्क है, न कौनों इजाफा बा। ई है अयोध्या, इन्हा कौनौं चीजे का कमी नाय बा। सब मंदिर में पहिले से ही कुल्हड़ जावा करत है, ई 10 हजार से कौनों फर्क नाय बा। उनके दीया जलवाए से कौनों असर नाय बाय। 10 हजार माने कुछौव नाय।
क्या पहले 10 हजार बेच लेते थे? इस सवाल पर रामकुमार कहते हैं कि काहे नाय बेंच लेत रहे। दर्शननगर, बेनीगंज से लइकै अयोध्या तक हम समान बेचित हैं। लेकिन कुछ तो लाभ बाटय, इहू से। परिवार में चार लड़िकन हैं। पतोह, बिटिया और मलकिन सब मिलकय काम करित हई। पहिले दादा-बाबा करत रहिन, ओकरे बाद 35 साल से तो हम करत बाटी।
रामकुमार के बड़े बेटे अनिल चाक चला रहे हैं। बताते हैं कि 5 साल पहले भी उतना ही दीया बनाते थे, जितना आज बनाते हैं। हम इन दीयों को बाजार में बेचते हैं, उसी से कमाते-खाते हैं। सरयू घाट पर जलाए जाने वाले दीये बनाने का ऑर्डर मिला है, उसकी कीमत हमें 100 रुपए सैकड़ा है। यानी एक रुपए में एक दीया बेचेंगे। पिछली बार डेढ़ रुपए दीया बेचे थे। ये काम तो एक दिन का है नहीं, यदि दीयो के भरोसे रहते तो खा नहीं पाते। असल में हम जी पा रहे हैं, तो अयोध्या के मंदिरों की बदौलत, जहां से हमें कुल्हड़ और अन्य मिट्‌टी के सामानों के भरपूर आर्डर मिलते हैं।
सड़क पर कुछ आगे बढ़ते हैं तो अशोक प्रजापति का घर है। अशोक चाक चला रहे हैं। ये इलेक्ट्रिक चाक उन्हें योगी सरकार ने दिया है। इन्हें 20 हजार दीयों का आर्डर मिला हुआ है। ये पूछने पर कि इससे क्या परिवार का खर्चा चल जाएगा? अशोक झल्लाकर कहते हैं कि रात-दिन मरना है। आवां लगाना है, आवां जलाना है, फूंकना है, तापना है, परिवार का चली। कोई सरकारी नौकरी बाय नहीं कि 40-50 हजार रुपया हर महीने अपने आप आवत बा।
कुल कितने दीयों का आर्डर मिला है? तो थोड़ा शांत होकर जवाब देते हैं। अशोक कहते हैं कि गांव में 40 घर कुम्हार हई। जिनका कुल दूई से ढाई लाख दीया का आर्डर ठेकेदार देहे हईन। करीब-करीब हर घर पीछे 10 से 20 हजार दीया बनत बाय। पहिले 5-7 लाख दीया हम सब बनावत रहिन, लेकिन कमीशन के चक्कर में सब कम होई गय।
कितना दीया बना लेते हैं? इस पर अशोक कहते हैं कि गिनती थोड़े करित है, लेकिन जब बैइठ जाइत है, तो हजार-दोई हजार दीया काट देइत है एक बार में।
दीपोत्सव का फायदा हो रहा है? यह सवाल पूछते ही अशोक बताने लगते हैं- जब से योगी जी आय हईन, तब से तो माटी का हर सामान ज्यादा बिकाय लाग। खरीदारियां बढ़ी बा। कुल्हड़ ज्यादा बिकय लाग बाय। सब ओर कुल्हड़ कय मांग बाय। ई वाला इलेक्ट्रिानिक चाक भी योगीजी से ही मिला बाय।

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