अहंकार नहीं, विनम्रता बनाती है श्रेष्ठ:
देवराज इंद्र और लोमश ऋषि की एक पौराणिक कथा है। इस कथा में बताया गया है कि जब इंद्र को अहंकार हो गया तो लोमश ऋषि ने कैसे इंद्र का अहंकार दूर किया था।
कथा के मुताबिक, एक बार इंद्र ने अपने लिए एक अद्भुत महल बनवाया। ये महल इसलिए भी खास था, क्योंकि इसे देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा ने तैयार किया था। इंद्र इस निर्माण से इतने प्रभावित हुए कि वे सभी देवताओं को बुलाकर अपना महल दिखाने लगे। इंद्र अपने महल की प्रशंसा करने लगे, ये सिलसिला ऐसा चला कि इंद्र के मन में श्रेष्ठता का भाव अहंकार में बदल गया।
इंद्र ने देवर्षि नारद को बुलाकर पूछा कि क्या आपने इससे सुंदर महल कभी देखा है?
नारद मुस्कुराए और बोले कि मेरी जानकारी सीमित हो सकती है। आप ऋषि लोमश से पूछें जो एक हजार वर्षों से भी ज्यादा समय से जीवित हैं। नारद जी की बात मानकर इंद्र ने लोमश ऋषि को अपना महल दिखाने के लिए बुला लिया।
ऋषि लोमश को महल दिखाते हुए इंद्र ने वही सवाल दोहराया कि क्या आपने इससे सुंदर महल कभी देखा है?
लोमश ऋषि ने शांति से उत्तर दिया कि मैंने अपने जीवन में असंख्य इंद्र देखे हैं। एक से बढ़कर एक महलों का वैभव देखा है, लेकिन आज वे सब इतिहास हो चुके हैं।
उन्होंने आगे कहा कि तुम जिस महल पर गर्व कर रहे हो, वह भी समय के साथ मिट्टी में मिल जाएगा। यही संसार का नियम है, जो आया है, वह जाएगा। ये सोच कि तुम सर्वोत्तम हो, अहंकार है और अहंकार ही पतन की पहली सीढ़ी है।
लोमश ऋषि की बात सुनकर इंद्र को अपनी गलती समझ आ गई।
ये कहानी हमें लाइफ मैनेजमेंट के 5 सूत्र बताती है…
उपलब्धि पर गर्व करें, लेकिन अहंकार न करें – अपना सर्वश्रेष्ठ देना अच्छी बात है, लेकिन यह मान लेना कि अब इससे ऊपर कुछ नहीं, ये सोच आपको असफल बना सकती है। विनम्रता ही आगे बढ़ने की कुंजी है।
तुलना से प्रेरणा लें, लेकिन दूसरों को कमजोर न समझें – दूसरों की उपलब्धियों को देखकर प्रेरणा लेना सकारात्मक सोच है, लेकिन उन्हें नीचा दिखाना या अपने को उनसे श्रेष्ठ मानना एक गलत मानसिकता है जो रिश्तों और विकास दोनों को नुकसान पहुंचाती है।
समय से बड़ा कोई नहीं – आपका साम्राज्य, आपकी पहचान, आपकी उपलब्धियां, सब कुछ समय की कसौटी पर खरे उतरने चाहिए। समय के साथ हर चीज बदलती है, इसलिए सच्चा विजेता वही है जो समय के साथ नम्रता और लचीलापन भी अपनाता है।
हर निर्माण एक दिन खत्म हो जाएगा – जो आज नया है, वह कल पुराना होगा। इंद्र के महल जैसा कोई भी सर्वोत्तम निर्माण स्थायी नहीं होता है। स्थायित्व अगर किसी चीज में है तो वह है चरित्र, दृष्टिकोण और सेवा भावना में। ध्यान रखें हर निर्माण एक दिन खत्म हो जाएगा, इसलिए ऐसी चीजों का घमंड न करें।
सीखना बंद नहीं होना चाहिए – इंद्र को लगा था कि मैं ही सब कुछ जानता हूं और मुझसे ऊपर कोई नहीं है। नारद ने उन्हें किसी और से सीखने की सलाह दी और लोमश ऋषि ने उन्हें सिखाया भी। यही दर्शाता है कि बड़ा बनने के लिए सीखने का भाव सबसे जरूरी है।