विपुल शाह ने थिएटर में 10 रुपए से शुरुआत की
विपुल अमृतलाल शाह…ये नाम आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है। इनका सफर थिएटर के बैकस्टेज से शुरू होता है तो 70 एमएम के पर्दे पर बॉलीवुड सुपरस्टार्स की चमक बिखेरने तक जाता है।
बॉलीवुड के टॉप डायरेक्टर-प्रोड्यूसर रहे विपुल वो शख्स हैं, जिन्होंने देश को डेली सोप का कॉन्सेप्ट दिया। फैमिली ओरिएंटेड और आउट ऑफ द बॉक्स फिल्में बनाना इनकी पहचान है। इनकी कहानी और डायरेक्शन में वो ताकत थी, जिसने बॉलीवुड के महानायक को पर्दे पर विलेन बनने के लिए तैयार कर दिया।
बचपन से ही क्रिएटिव फील्ड में जाना चाहता था
मैं पार्ले ईस्ट की एक मिडिल क्लास फैमिली में पैदा हुआ था। पार्ले ईस्ट खुली जगह थी, जिसमें हम बच्चे दिनभर घूमते-खेलते थे। ये जो आज की दुनिया है, हमारी दुनिया उससे बहुत अलग और बेहतर थी। कोई प्रेशर नहीं था। इस वजह से पर्सनैलिटी अपने आप खिलती गई। मैं जो बनना चाहता था वो अपने आप ही अंदर से निकलता गया।
मुझे बचपन से ही क्रिएटिव फील्ड से जुड़ने का शौक था। स्कूल में नाटकों का हिस्सा रहा, फिर मैंने कॉलेज भी इसी आधार पर चुना था। मैंने जुहू के एनएम कॉलेज से पढ़ाई की है। ये कॉलेज इंटर कॉम्पिटिशन प्ले (नाटकों) के लिए बहुत बेहतरीन कॉलेज माना जाता था। यहां जो हमारे डायरेक्टर महेंद्र जोशी थे वो ही हमें पृथ्वी थिएटर ले गए।
यहां मैंने बैकस्टेज से शुरुआत की। धीरे-धीरे स्टेज पर आकर छोटे-मोटे रोल किए। इन सबके बीच एहसास हुआ कि मुझे एक्टिंग से ज्यादा मजा डायरेक्शन में आ रहा है। मैंने खुद का प्ले बनाना शुरू किया, जो बहुत पॉपुलर हुए। इसके बाद मैंने टीवी में काम किया। यहां भी मैंने सफलता का स्वाद चखा।
थिएटर में कभी-कभी 10 रुपए मिल जाते थे
मेरी फैमिली ने मुझे हर फैसले में हमेशा सपोर्ट किया था। पार्ले ईस्ट में पार्ले डिपो करके हमारा एक बुक स्टोर था, जो आज भी है। बिजनेस फैमिली का माहौल थोड़ा अलग ही होता है। मैं कोई पैसे वाली फैमिली से नहीं था, लेकिन सब ठीकठाक चल रहा था। मैं थिएटर करता था तो कोई आमदनी नहीं होती। पृथ्वी थिएटर में शो का कलेक्शन अच्छा रहा तो कभी 10 रुपए मिल जाते थे। ऐसे में पिताजी हमेशा पूछते थे कि जिंदगी कैसे चलाओगे? मेरे पास कभी इस सवाल का जवाब नहीं रहा क्योंकि मुझे खुद नहीं पता था।
एक दिन पिताजी ने सामने बिठाकर यही सवाल दोबारा पूछ लिया। मैंने उस वक्त उनसे कहा कि आप कुछ मत दीजिए। मैं कोई ना कोई रास्ता निकाल लूंगा, लेकिन मुझे यही करना है। पिताजी ने कहा ठीक है, जब तुम्हें यही करना है तो एक उम्र तय करो। अगर उस उम्र तक तुम्हारा डायरेक्शन फील्ड में कुछ नहीं हुआ, तो फिर तुम सेल्समैन बनकर अपनी किताब की दुकान से जुड़ जाओगे। मेरी कोशिश धीरे-धीरे रंग लाई, मैं सफल होने लगा।