27 मई को शनि जयंती:ज्येष्ठ अमावस्या पर करें शनिदेव और बरगद–पीपल की विशेष पूजा
मंगलवार। 27 मई को ज्येष्ठ अमावस्या है, और इस तिथि पर शनि देव की जंयती मनाई जाती है। अमावस्या पर पूजा-पाठ, स्नान, दान-पुण्य के साथ ही पितरों के लिए श्राद्ध और तर्पण भी किया जाता है। जिन लोगों की कुंडली में शनि से जुड़े दोष हैं, उन्हें शनि जयंती पर शनि देव का तेल से अभिषेक करना चाहिए। इस तिथि पर महिलाएं सौभाग्य की कामना से वट यानी बरगद की पूजा करती हैं, इस व्रत को वट सावित्री व्रत कहते हैं। इस साल पंचांग भेद और तिथियों की घट-बढ़ की वजह से ज्येष्ठ अमावस्या 26 और 27 मई को है। अधिकतर क्षेत्रों में 26 को वट सावित्रि व्रत और 27 को शनि जयंती मनाई जाएगी।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, शनि मनु, यमराज, यमुना और ताप्ती भाई-बहन हैं। स्कंद पुराण में लिखा है कि प्रजापति दक्ष की बेटी संज्ञा का विवाह सूर्यदेव के साथ हुआ था। संज्ञा ने मनु, यमराज और यमुना को जन्म दिया। बाद में जब संज्ञा सूर्य का तेज सहन नहीं कर पा रही थीं, तब संज्ञा ने सूर्य की सेवा अपनी छाया को लगा दिया और खुद वहां से दूर चली गईं। छाया और सूर्य की संतान के रूप में शनिदेव और भद्रा यानी ताप्ती नदी का जन्म हुआ।
ऐसे कर सकते हैं शनि देव की पूजा
शनि जयंती पर सुबह जल्दी उठें और सूर्य को अर्घ्य अर्पित करें। इसके बाद घर के मंदिर में या किसी अन्य मंदिर में काला कपड़ा बिछाकर शनिदेव की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। अगर तस्वीर-मूर्ति न हो तो एक सुपारी को शनि का प्रतीक मानकर उसकी पूजा करें। शनिदेव को तेल चढ़ाएं। दीपक जलाएं। अबीर, गुलाल, सिंदूर और काजल चढ़ाएं। नीले फूल और नीले वस्त्रों से श्रृंगार करें। इमरती और तेल में तली खाने की चीजों का भोग लगाएं। नारियल और फल चढ़ाएं। आरती करें।
शनि पूजा के साथ ही इस दिन सरसों का तेल और काली उड़द, काले तिल, नीले वस्त्र, जूते-चप्पल दान करें। व्रत रखें।
शनि पूजा में तेल, नीले फूल के साथ ही शमी के पत्ते भी जरूर चढ़ाएं। अगर विधिवत पूजा नहीं कर पा रहे हैं तो तेल और शनी के पत्ते चढ़ाकर भी पूजा कर सकते हैं।
वट सावित्री व्रत से जुड़ी खास बातें
वट सावित्री व्रत महिलाओं के लिए महाव्रत की तरह है। माना जाता है कि पुराने समय में इसी तिथि पर सावित्री ने पति सत्यवान के प्राण यमराज से बचाए थे। वट सावित्री व्रत महिलाएं अपने पति के सौभाग्य, लंबे जीवन और अच्छी सेहत की कामना से करती हैं। इस व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। शिव-पार्वती का विशेष अभिषेक किया जाता है। जो महिलाएं ये व्रत करती हैं, वे सावित्री, सत्यवान और यमराज की कथा पढ़ती-सुनती हैं।