गणेश जी के साथ शिव जी और शुक्र ग्रह की पूजा का शुभ योग, किसी मंदिर में करें जल का दान

गणेश जी के साथ शिव जी और शुक्र ग्रह की पूजा का शुभ योग, किसी मंदिर में करें जल का दान

आज (शुक्रवार, 16 मई) ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा, देवी लक्ष्मी, शुक्र ग्रह और भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्व है। ये दिन न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व रखता है। ज्येष्ठ माह की भीषण गर्मी में जब अधिकांश जलस्रोत सूखने लगते हैं, ऐसे समय में ये माह हमें जल बचाने की प्रेरणा देता है। चतुर्थी व्रत भगवान गणेश की कृपा प्राप्ति के साथ ही जल बचाने और जीवन में संतुलन बनाए रखने का संदेश भी देता है।

ऐसे दिन की शुरुआत ऐसे करें

सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान कर तांबे के लोटे से सूर्यदेव को जल अर्पित करें।
घर के मंदिर में भगवान गणेश की विधिवत पूजा करें। उन्हें सिंदूर, दूर्वा, फूल, चावल, फल, जनेऊ और प्रसाद में मोदक चढ़ाएं।
धूप-दीप जलाकर “श्री गणेशाय नम:” मंत्र का जाप करें और व्रत का संकल्प लें।
पूरे दिन अन्न का त्याग करें। अगर पूर्ण उपवास संभव न हो, तो फल, दूध, फलाहार या फलों का रस ले सकते हैं।
भगवान गणेश के 12 नामों का 108 बार जप करें:

ऊँ सुमुखाय नम:

ऊँ एकदंताय नम:

ऊँ कपिलाय नम:

ऊँ गजकर्णाय नम:

ऊँ लंबोदराय नम:

ऊँ विकटाय नम:

ऊँ विघ्ननाशाय नम:

ऊँ विनायकाय नम:

ऊँ धूम्रकेतवे नम:

ऊँ गणाध्यक्षाय नम:

ऊँ भालचंद्राय नम:

ऊँ गजाननाय नम:

पूजा के पश्चात प्रसाद का वितरण करें।

देवी लक्ष्मी और विष्णु की पूजा

शुक्रवार को देवी लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु का पूजन करना विशेष फलदायी होता है। केसर मिश्रित दूध से भगवान विष्णु का अभिषेक करें। तुलसी और मिठाई का भोग लगाकर “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।

शिवलिंग रूप में होती है शुक्र ग्रह की पूजा

शुक्रवार शुक्र ग्रह का दिन माना जाता है। ज्योतिष में शुक्रवार का कारक ग्रह शुक्र को माना जाता है। जिन लोगों की कुंडली में शुक्र ग्रह से जुड़े दोष हैं, उन्हें हर शुक्रवार शिव पूजा करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि शुक्र की पूजा शिवलिंग रूप में ही की जाती है। शिवलिंग पर बिल्व पत्र, शमी के पत्ते, आंकड़े के फूल, गुलाब, धतूरा, चंदन, चावल, जनेऊ आदि अर्पित करें। शिवलिंग को फूलों से सजाएं, मिठाई व मौसमी फल अर्पित करें और “ऊँ नम: शिवाय” मंत्र का जाप करें। देवी पार्वती का भी जलधारा से अभिषेक करें।

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