एक व्यक्ति अपने पिता के दाह संस्कार के लिए चंदन की लकड़ियां खोजते हुए युधिष्ठिर के पास पहुंचा

एक व्यक्ति अपने पिता के दाह संस्कार के लिए चंदन की लकड़ियां खोजते हुए युधिष्ठिर के पास पहुंचा

महाभारत में जीवन प्रबंधन, नैतिकता और नेतृत्व के गहरे सूत्र छिपे हैं। महाभारत में एक कथा है, जिसमें युधिष्ठिर और कर्ण की तुलना होती है। कथा में जब एक व्यक्ति अपने पिता के दाह संस्कार के लिए चंदन की लकड़ियां खोजते हुए पहले युधिष्ठिर और फिर कर्ण के पास पहुंचता है।

एक व्यक्ति के पिता का देहांत हो गया तो वह सोचने लगा कि मुझे अपने पिता का अंतिम संस्कार चंदन की लकड़ियों से करना चाहिए। इस समय बारिश हो रही थी, इस कारण कहीं भी चंदन की सूखी लकड़ियां नहीं थीं। उस व्यक्ति ने विचार किया कि मुझे अपने राजा युधिष्ठिर के पास जाना चाहिए।

युधिष्ठिर के पास संसाधनों की कोई कमी नहीं थी। जब व्यक्ति युधिष्ठिर के पास पहुंचा तो युधिष्ठिर ने उससे कहा कि चंदन की लकड़ियां तो बहुत हैं, लेकिन बारिश की वजह से भीग गई हैं। ये सुनकर वह व्यक्ति वहां से निराश होकर कर्ण के पास पहुंचा।

कर्ण की स्थिति भी वही थी, उसके पास की चंदन की लकड़ियां भी भीग चुकी थीं, लेकिन कर्ण ने थोड़ा सोच-विचार किया कि मेरे द्वार से आज तक कोई खाली हाथ नहीं गया है, इसे भी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। कर्ण के पास जो सिंहासन था, वह चंदन की लकड़ी से ही बना था। कर्ण ने तुरंत ही अपना सिंहासन तोड़कर उस व्यक्ति को चंदन की लकड़ियां दे दीं।

चंदन की लकड़ी का सिंहासन तो युधिष्ठिर के पास भी था, लेकिन युधिष्ठिर ऐसा कुछ सोच नहीं सके। इस घटना के बाद ये चर्चा होने लगी थी कि ज्यादा बड़ा दानी कौन है- युधिष्ठिर या कर्ण।

इस कथा से जीवन प्रबंधन की तीन बातें हम सीख सकते हैं।
पहली बात – समस्या नहीं, उसके समाधान पर ध्यान देना चाहिए।

युधिष्ठिर ने देखा कि लकड़ियां भीगी हैं और निष्कर्ष पर पहुंच गए कि उनके चंदन की सूखी लकड़ियां नहीं हैं। दूसरी ओर कर्ण ने समस्या के समाधान के बारे में सोचा। यही सफल जीवन प्रबंधन का मूलमंत्र है, जब परिस्थिति जटिल हो, तब समाधान ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए।

दूसरी बात – दान समझदारी से देना चाहिए। कर्ण ने ये नहीं सोचा कि सिंहासन कट जाएगा, बल्कि ये देखा कि किसी की अंतिम इच्छा पूरी हो सकती है। यही सच्ची उदारता है, जो समय, स्थान और पात्र को समझकर निर्णय लेती है। हमें भी दान देते समय समझदारी से काम लेना चाहिए।

तीसरी बात – सम्मान पद से नहीं अच्छे कर्म से मिलता है। युधिष्ठिर राजा थे, पर कर्ण का ये कर्म श्रेष्ठ था। ऐसे ही कर्मों की वजह से कर्ण को दानवीर कहा जाता है।

किसी की मदद करनी हो तो हमें सिर्फ अपना सामर्थ्य देखना काफी नहीं, समय और सामने वाले की भावना भी समझनी चाहिए। जब कोई जरूरतमंद दिखाई दे तो उसकी जरूरत को समझकर दान करें। कर्ण और युधिष्ठिर की यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची सेवा वही है जो सहानुभूति और दूरदृष्टि से की जाए। तभी हम भी अपने जीवन में दानवीर बन सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

बिन्नू रानी बोली-बंगला कितनो बड़ौ है, दिग्गी ने कहा-सरकारी है     |     बीकॉम की छात्रा से रेप:मंगेतर ने शादी से इनकार किया, पीड़िता थाने पहुंची     |     इंदौर में नाबालिग बेटी दे पाएगी पिता को लिवर     |     अलका याग्निक को न्यूरो डिसीज, सुनाई देना बंद हुआ     |     मणिपुर में उपद्रवियों ने CRPF की बस में आग लगाई     |     हिंदुजा फैमिली पर घरेलू स्टाफ से क्रूरता के आरोप     |     गंभीर ने टीम इंडिया के कोच का इंटरव्यू दिया     |     ज्येष्ठ पूर्णिमा को सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने की है परंपरा     |     18 JUNE 2024     |     बैतूल-इंदौर हाईवे पर बेकाबू हुआ ट्रक गुमठियों में घुसा     |     ब्लास्ट की साजिश के आरोपी को जयपुर ले गई NIA     |     पीएम मोदी को खून से लिखा पत्र:पहलगाम हमले का दर्द     |     वरुण @38, 4 बार रिजेक्ट फिर भी नताशा से शादी     |     मधुबनी से PM मोदी ने दिया आतंकियों को कड़ा संदेश     |     पहलगाम हमला–सरकार ने सुरक्षा में चूक मानी     |     पाकिस्तान पीएम बोले- सिंधु जल समझौते पर पाबंदी सही नहीं     |     IPL में RCB vs RR:संदीप शर्मा को 2 विकेट, पडिक्कल और पाटीदार को पवेलियन भेजा     |     एक व्यक्ति अपने पिता के दाह संस्कार के लिए चंदन की लकड़ियां खोजते हुए युधिष्ठिर के पास पहुंचा     |     24 APR 2025     |