24 अप्रैल को एकादशी व्रत:परिवार की सुख-समृद्धि की कामना से किया जाता है वरुथिनि एकादशी का व्रत

24 अप्रैल को एकादशी व्रत:परिवार की सुख-समृद्धि की कामना से किया जाता है वरुथिनि एकादशी का व्रत
कल 24 अप्रैल को वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी है, इसका नाम वरुथिनि है। ये व्रत घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनाए रखने की कामना से किया जाता है। इस व्रत में भक्त दिनभर निराहार रहते हैं और भगवान विष्णु की विशेष पूजा करते हैं। मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी के व्रत के शुभ फल से संतान की समस्याएं दूर होती हैं। ये व्रत महालक्ष्मी की प्रसन्नता पाने की कामना से भी किया जाता है।

ऐसे कर सकते हैं एकादशी व्रत

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, जो लोग वरूथिनी एकादशी व्रत करना चाहते हैं, उन्हें दशमी तिथि की शाम से ही नियमों का पालन करना शुरू कर देना चाहिए। दशमी की शाम सात्विक आहार लें। ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी सुबह सूर्योदय से पहले बिस्तर छोड़ देना चाहिए। स्नान के बाद उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करें, ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जप करें।

घर के मंदिर भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की पूजा करें। सबसे पहले गणेश पूजन करें। इसके बाद विष्णु-लक्ष्मी का अभिषेक पंचामृत से करें। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें। भगवान विष्णु के साथ ही लक्ष्मीजी की पूजा करें। दक्षिणावर्ती शंख में केसर मिश्रित दूध भरें और अभिषेक करें। विष्णु जी को पीले वस्त्र चढ़ाएं। महालक्ष्मी का लाल चुनरी और सुहाग का सामान अर्पित करें। तुलसी के साथ मिठाई का भोग लगाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें।

विष्णु-लक्ष्मी के साथ ही श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप बालगोपाल की भी पूजा जरूर करें। बाल गोपाल को तुलसी के साथ माखन-मिश्री का भोग लगाएं। भगवान के सामने एकादशी व्रत करने का संकल्प लें। व्रत करने वाले व्यक्ति को इस दिन अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए, भूखे रहना संभव न हो तो फलाहार करना चाहिए।

एकादशी पर स्नान और दान का महत्व

वरूथिनी एकादशी पर गंगा, यमुना, नर्मदा, शिप्रा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है। अगर नदी स्नान करना संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। स्नान के बाद पूजा करें, पूजा में व्रत और दान करने का संकल्प लिया जाता है। अभी गर्मी का समय है तो इस व्रत में जल दान करने का महत्व काफी अधिक है। किसी सार्वजनिक जगह पर प्याऊ लगा सकते हैं। प्याऊ लगाना संभव न हो तो किसी प्याऊ में मटके का दान कर सकते हैं।

इस एकादशी पर तिल, अन्न और भोजन दान करने का सबसे ज्यादा महत्व है। अन्न और जल दान से देवी-देवताओं के साथ ही हमारे पितर देवताओं को भी तृप्ति मिल जाती है।

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था एकादशियों का महत्व

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सालभर की सभी एकादशियों के बारे बताया था। एकादशियों से जुड़ा प्रसंग स्कंद पुराण के वैष्णव खंड में बताया गया है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक धुंधुमार और मान्धाता जैसे कई राजाओं ने इस एकादशी का व्रत किया था। ये एकादशी इसलिए भी खास है, क्योंकि ये वैशाख महीने में आती है। इस महीने और तिथि के स्वामी भगवान विष्णु ही हैं।

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