चैत्र पूर्णिमा, हनुमान प्रकट उत्सव और शनिवार का योग

चैत्र पूर्णिमा, हनुमान प्रकट उत्सव और शनिवार का योग

शनिवार, 12 अप्रैल चैत्र मास की पूर्णिमा है, इसी तिथि पर हनुमान जी का प्रकट उत्सव भी मनाया जाता है। जब ये तिथि शनिवार को पड़ती है तो इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। इस दिन किए गए धार्मिक कार्यों, व्रत-उपवास, दान-पुण्य और आध्यात्मिक साधनाओं का अक्षय पुण्य प्राप्त होता है, ऐसा पुण्य जिसका शुभ असर जीवनभर बना रहता है।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा से जानिए हनुमान प्रकट उत्सव, शनिवार और चैत्र पूर्णिमा के योग में कौन-कौन से शुभ काम किए जा सकते हैं…

माना जाता है कि चैत्र पूर्णिमा पर गंगा, यमुना या किसी भी पवित्र नदी में स्नान करने से सभी पापों के फल का नाश होता है। यदि तीर्थ स्थान जाना संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं।
इस दिन हनुमान जी का चोला चढ़वाएं। चोला चढ़वाना यानी हनुमान जी का श्रृंगार करवाना। अगर ये संभव न हो तो किसी हनुमान मंदिर में सिंदूर और चमेली का तेल दान करें। मंदिर में दीपक जलाकर हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ करें।
इस तिथि पर भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़ने-सुनने का महत्व काफी अधिक है। सत्यनारायण भगवान विष्णु का ही एक स्वरूप है। इनकी पूजा करने का संदेश ये है कि हमें अपने जीवन में सत्य को अपनाना चाहिए, कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए।
शनिवार और चैत्र पूर्णिमा के योग में दान करने का विशेष महत्व है। इस दिन तिल, तेल, काला वस्त्र, अन्न, जल से भरे कलश, घी, चावल, दूध का दान कर सकते हैं। गाय को घास खिलाएं। जरूरतमंदों को जरूरत की चीजें दान करें।
शनिवार को पीपल पूजन करने की परंपरा है। इस दिन पीपल को जल चढ़ाएं और परिक्रमा करें। पीपल को भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण का स्वरूप माना जाता है, इसलिए परिक्रमा करते समय ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय और कृं कृष्णाय नम: मंत्र का जप करना चाहिए। ध्यान रखें पीपल को जल सुबह ही चढ़ाएं।
पूर्णिमा पर अपने इष्टदेव की पूजा करें। पूजा में भगवान के मंत्रों का जप करें। मंत्र – ऊँ नमः शिवाय, ऊँ नमो नारायणाय, ऊँ शं शनैश्चराय नमः, रां रामाय नम:, ऊँ श्रीरामदूताय नम:, श्री गणेशाय नम: का जप कर सकते हैं।
शनिवार और पूर्णिमा के योग में शनि देव की भी विशेष पूजा करनी चाहिए। इस दिन की गई पूजा से कुंडली के शनि दोष, साढ़ेसाती और ढय्या का अशुभ फल शांत होता है। शनि देव के लिए तेल का दान करें।
पूर्णिमा तिथि पर पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण और जलदान करना चाहिए। पितरों के नाम पर अनाज, धन और कपड़ों का दान भी करें। ऐसा करने से घर-परिवार पितृ तृप्त होते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं, ऐसी मान्यता है।
इस दिन श्रीमद्भगवद्गीता, श्रीरामचरितमानस, श्रीविष्णु सहस्रनाम, शिव पुराण जैसे ग्रंथों का पाठ करना चाहिए। इससे मानसिक शांति मिलती है और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
पूर्णिमा तिथि श्रीहरि विष्णु को समर्पित है, अतः इस दिन विष्णु जी और माता लक्ष्मी का विधिवत अभिषेक करें। पूजा में श्रीसूक्त, कनकधारा स्तोत्र आदि का पाठ करें।
पूर्णिमा की रात को चंद्रमा को दूध मिश्रित जल से अर्घ्य देना चाहिए। चंद्र देव की पूजा करें। ऐसा करने से कुंडली के चंद्रदोषों का असर कम होता है।
इस दिन संतों, गुरुओं, वृद्धों की सेवा करनी चाहिए। इनका आशीर्वाद जीवन में उन्नति और सफलता दिलाने में मदद करता है।
अभी गर्मी का समय है तो चैत्र पूर्णिमा पर जल का दान जरूर करें। किसी सार्वजनिक जगह पर पीने के पानी की व्यवस्था करें। किसी प्याऊ में मटके का दान करें। पक्षियों के लिए घर की छत पर दाना-पानी रखें।

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