हनुमान जी की सीख – भक्ति नि:स्वार्थ भाव से करनी चाहिए, मुश्किल काम करना हो तो आत्मविश्वास बनाए रखें
शनिवार, 12 अप्रैल को हनुमान जी का प्रकट उत्सव है। हनुमान जी अजर-अमर माने गए हैं, इसलिए हनुमान का जिक्र रामायण के साथ ही महाभारत में भी है। रामायण के समय हनुमान जी ने राम जी की मदद की और महाभारत में भीम-अर्जुन का घमंड तोड़ा, महाभारत युद्ध हनुमान जी अर्जुन के रथ के झंडे पर विराजित थे, इस तरह हनुमान जी पांडवों की मदद की थी। हनुमान से जुड़े किस्सों में जीवन को सुखी और सफल बनाने के सूत्र बताए गए हैं, इन सूत्रों को जीवन में उतार लेने से हमारी सभी समस्याएं खत्म हो सकती हैं…
भक्ति निःस्वार्थ भाव से करनी चाहिए
हनुमान जी की प्रमुख पहचान श्रीराम के प्रति उनकी निःस्वार्थ भक्ति है। राम जी ने कई बार हनुमान जी कुछ मांगने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने स्वार्थ के लिए कुछ नहीं मांगा। उनका जीवन श्रीराम की सेवा और भक्ति में पूर्ण रूप से समर्पित रहा।
आत्मविश्वास से मिलती है सफलता
लंका जाकर माता सीता का पता लगाने का काम बहुत मुश्किल था, लेकिन हनुमान ने आत्मविश्वास और भगवान राम की कृपा से ये मुश्किल काम भी पूरा किया। सुंदरकांड में हनुमान जी ने अद्भुत साहस, धैर्य और बुद्धिमत्ता का परिचय दिया था। लंका पहुँचकर वे सीता माता से मिले, उन्हें श्रीराम की अंगूठी दी और भरोसा दिलाया कि वे शीघ्र मुक्त होंगी।
राम-रावण के बीच हुए युद्ध के समय जब लक्ष्मण मूर्छित हो गए, तब हनुमान जी को संजीवनी बूटी लाने भेजा गया। उन्होंने पूरा पर्वत ही उठा लिया और समय रहते लौट आए, जिससे लक्ष्मण का जीवन बच सका।
यदि किसी कार्य के प्रति निष्ठा और भक्ति हो और खुद पर भरोसा हो तो असंभव काम को भी संभव किया जा सकता है। जब लक्ष्य स्पष्ट हो तो हर बाधा आसानी से पार हो सकती है।
सेवा भावना के साथ करना चाहिए हर काम
हनुमान जी ने कभी भी अपनी शक्तियों पर घमंड नहीं किया। बलवान और सामर्थ्यवान होने के बाद भी वे सदा सेवाभावी रहे। रावण वध के बाद जब रामराज्य की स्थापना हुई, तब सभी लोग विश्राम कर रहे थे, लेकिन हनुमान जी उस समय भी श्रीराम की सेवा में लगे रहे। सेवा भावना के साथ किए गए काम मन को शांत करते हैं और हमें अहंकार से बचाते हैं।