अमेरिका के फैसलों ने पहले भी 4 बार दुनिया हिलाई:पहली मंदी से हिटलर आया

अमेरिका के फैसलों ने पहले भी 4 बार दुनिया हिलाई:पहली मंदी से हिटलर आया
वॉशिंगटन डीसी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 60 देशों पर टैरिफ लगा दिया है। इस वजह से दुनियाभर के शेयर बाजार में उथल-पुथल मच गई है। भारत के सेंसेक्स में 19 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हो चुका है।

एक्सपर्ट्स का मानना है कि आने वाले दिनों में इसमें और इजाफा हो सकता है। यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका के किसी फैसले से दुनियाभर के बाजार में गिरावट आई है।

स्टोरी में ऐसी 4 घटनाओं के बारे में जानिए…

1929- कर्ज लेकर शेयर खरीदे, बुलबुला फूटा तो आया ‘द ग्रेट डिप्रेशन’

प्रथम विश्वयुद्ध के खत्म होने के बाद अमेरिका सुपर पावर के तौर पर उभरा था। इकोनॉमी तेजी से बढ़ रही थी। शेयर बाजार को लेकर तब लोगों की यह समझ बन गई थी कि यह हमेशा ऊपर ही जाएगा।

इस वजह से लोग कर्ज लेकर भी शेयर खरीद रहे थे। निवेशक अपनी पूंजी का 10 से 20% पैसा लगाते थे, बाकी ब्रोकर से कर्ज ले लेते। अमेरिकी सरकार ने इस जोखिम भरे खेल पर कोई रोक नहीं लगाया। तब शेयर मार्केट को कंट्रोल करने के लिए कोई एजेंसी भी नहीं थी।

1928 के अंत तक बाजार में शेयर की कीमतें बहुत ज्यादा बढ़ गईं। डाउ जोन्स 1921 में 63 अंकों पर था। 8 साल बाद यह 6 गुना बढ़कर 381 अंकों पर पहुंच चुका था। दूसरी तरफ अमेरिका में मजदूरों और किसानों की इनकम बढ़ नहीं रही थी। कंपनियों का मुनाफा आसमान छू रहा था।

इस वजह से मांग और आपूर्ति में भारी अंतर पैदा हो गया था। कंपनियां खूब सारा प्रोडक्ट्स बना रही थीं, लेकिन उस अनुपात में बिक नहीं रहे थे। इसका असर मार्केट पर पड़ा। अचानक शेयर गिरने लगे, इस नुकसान की भरपाई के लिए लोगों ने शेयर बेचना शुरू कर दिया। इससे बाजार और तेजी से गिरा, लोगों ने फिर शेयर बेचे। यह एक चेन रिएक्शन बन गया।

अखबारों ने इस घटना को बढ़ा-चढ़ाकर छापा, जिसने निवेशकों का डर और बढ़ गया। छोटे निवेशक, जो मार्जिन पर भारी कर्ज में थे, सबसे ज्यादा घबराए।

बैंकों से पैसा निकालने की होड़ मची; 3 साल में 9,000 बैंक दिवालिया

29 अक्टूबर 1929 को शेयर बाजार में एक ही दिन में 13% की गिरावट हुई। इसके बाद कई महीनों तक बाजार में गिरावट जारी रही, जिससे लाखों निवेशक भारी नुकसान में आ गए। बैंकों ने अपना कर्ज वसूलने की कोशिश, लेकिन निवेशकों के पास पैसा नहीं था।
लोन का पैसा हासिल न होने से बैंक फेल होने लगे। लोगों का यकीन बैंक पर से उठ गया। वे अपनी जमा पूंजी निकालने लगे। बैंकों के आगे पैसे निकालने वालों की लंबी-लंबी कतारें लगने लगीं। 1930-33 के बीच अमेरिका में 9,000 से ज्यादा बैंक दिवालिया हो गए।
देश में बेरोजगारी 3% से बढ़कर 25% हो गई। 1.5 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हो गए। कई इंडस्ट्री बंद हो गईं और लोग सड़कों पर भीख मांगने लगे।
1929 में शुरू हुई मंदी पूरी दुनिया में फैली। भारत में जूट, कपास और चाय के निर्यात पर असर पड़ा। किसानों की आय गिरी। ब्रिटिश सामानों की मांग कम होने से भारतीय उद्योग पर भी असर पड़ा।
इस आर्थिक संकट ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष को और बढ़ाया, भारत में आजादी की मांग और तेज हुई। इस मंदी का असर 10 साल तक रहा।
भारत के अलावा कई देशों में इसकी वजह से राजनीतिक अस्थिरता फैली। जर्मनी में नाजी पार्टी के आने की वजह और दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने की वजह इसी मंदी को माना जाता है।
1971- डॉलर दो सोना लो सिस्टम फेल, दुनिया को ‘निक्सन शॉक’ मिला

दूसरे विश्वयुद्ध तक ज्यादातर देशों के पास जितना सोने का भंडार होता था, वो उतनी ही वैल्यू की करेंसी जारी करते थे। 1944 में ब्रेटन वुड्स सिस्टम के शुरू होने से यह सिस्टम बदल गया। तब दुनिया के 44 देशों के डेलिगेट्स मिले और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सभी करेंसी का एक्सचेंज रेट तय किया।

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इसलिए, क्योंकि तब अमेरिका के पास सबसे ज्यादा सोने का भंडार था और वो दुनिया की सबसे बड़ी और स्थिर अर्थव्यवस्था था। तब अमेरिका ने यह वादा किया था कि कोई भी देश अपने डॉलर को सोना में बदल सकता है। इसे ‘गोल्ड विंडो’ कहा जाता था। जब ये वादा किया गया था तब अमेरिका के पास 20 हजार टन सोना था जो कि दुनिया का 70% था।

हालांकि, 30 साल बाद यह सिस्टम फेल होना शुरू हो गया। दरअसल, अमेरिका, वियतनाम जंग में उलझ चुका था। उसने इस जंग में कई बिलियन डॉलर झोंक डाले थे। डॉलर की कमी पूरी करने के लिए वह लगातार डॉलर छापता जा रहा था।

सोना खरीदने के लिए अपने जहाज अमेरिका भेजने लगी दुनिया

फ्रांस ने इसका खुलकर विरोध किया। राष्ट्रपति चॉर्ल्स डी गॉल ने कहा कि ब्रेटन वुड्स सिस्टम अमेरिका को खूब फायदा पहुंचाता है क्योंकि वह बिना किसी सीमा के डॉलर छाप सकता है।
चॉर्ल्स डी गॉल ने इस सिस्टम का तोड़ निकाल लिया और डॉलर के बदले सोना खरीदना शुरू किया।
फ्रांस ने 1965 से अपने जहाजों में डॉलर भरकर अमेरिका और ब्रिटेन से सोना मंगवाना शुरू किया और 3 साल में 3,313 टन सोना मंगवा लिया।
फ्रांस को देख जर्मनी, स्विट्जरलैंड, ब्रिटेन और जापान जैसे देश भी ऐसा करने लगे। अमेरिका के पास रखा सोना खत्म न हो जाए, इस चिंता में बाकी देश भी ऐसा करने लगे।
1971 की शुरुआत तक अमेरिका के पास सिर्फ 10 अरब डॉलर की कीमत का सोना ही रह गया था। वहीं, विदेशी देशों को पास 40 हजार अरब डॉलर जमा हो चुके थे। यानी कि अमेरिका कभी दूसरे देशों को उतनी कीमत का सोना नहीं दे सकता था।
15 अगस्त 1971 को अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने गोल्ड स्टैंडर्ड सिस्टम का अंत कर दिया। उन्होंने विदेशी सामानों पर 10% का टैरिफ भी लगा दिया। इसे ‘निक्सन शॉक’ कहा गया। अगले दिन सुबह जब दुनिया जागी, तो वित्तीय बाजारों में हड़कंप मच गया।
यूरोप और एशिया के शेयर बाजारों में 3-5% की गिरावट आई। विदेशी बाजार में डॉलर की कीमत तुरंत गिर गई। यह पहली बार था जब डॉलर का मूल्य बाजार तय करने लगा था।
लंबे समय में अमेरिका को नुकसान पहुंचा और उसके कई देशों से संबंध खराब हो गए। तेल की कीमतें चार गुना बढ़ गईं। 1975 में जाकर दुनिया इससे उबर सकी।

1987- शेयर मार्केट का सबसे बुरा दिन आया, नाम मिला- ब्लैक मंडे

साल 1981 में राष्ट्रपति बनने पर रोनाल्ड रीगन ने टैक्स कम किए, सरकारी खर्चे में कटौती की बाजार को और खोला। इसे ‘रीगनॉमिक्स’ नाम दिया गया। इससे अमेरिकी शेयर बाजार में जबरदस्त तेजी आई। 1982 में डाउ जोंस 777 अंक पर था, यह 1987 में 2,722 अंक पर पहुंच गया।

वॉल स्ट्रीट पर हर कोई पैसा बना रहा था। ब्याज दरें बढ़ रही थीं, मुद्रास्फीति का डर था, और बाजार में सट्टेबाजी चरम पर थी। फिर भी, किसी को अंदाजा नहीं था कि एक तूफान आने वाला है। इसी बीच 16 अक्टूबर (शुक्रवार) को यह खबर आई कि अमेरिकी सरकार टैक्स नियमों में बदलाव कर सकती है। इससे कंपनियों का टेकओवर मुश्किल हो जाएगा।

अखबारों ने इस खबर को बढ़ा-चढ़ाकर छापा और दो दिन बाद जो मंडे आया, उसका जिक्र आज भी ‘ब्लैक मंडे’ से होता है। 19 अक्टूबर को न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज (NYSE) का घंटा बजने के साथ की गिरावट का दौर शुरू हुआ जो बंद होने तक जारी रहा।

कम्प्यूटर की वजह से बिकवाली ज्यादा हुई, एक दिन में 45.8% गिरा बाजार

गिरावट में कम्प्यूटर का सबसे ज्यादा योगदान रहा। दरअसल, उस समय शेयर बाजार में कम्प्यूटर का इस्तेमाल शुरू ही हुआ था।
जैसे ही मार्केट में बिकवाली शुरू हुई लोगों ने तकनीक का फायदा उठाते हुए ज्यादा से ज्यादा स्टॉक बेच डाले। इससे मार्केट और तेजी से गिरने लगा।
डाउ जोन्स ने एक ही दिन में 508 अंक (22.6%) की गिरावट दर्ज की। यह अमेरिकी शेयर मार्केट में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट थी।
अमेरिका में 500 अरब डॉलर से ज्यादा की संपत्ति एक दिन में गायब हो गई।
इसका बाकी देशों पर भी असर पड़ा। हॉन्गकॉन्ग में एक दिन में 45.8% मार्केट गिर गया। इस वजह से बाजार को अगले चार दिन तक बंद करना पड़ा।
ऑस्ट्रेलिया में शेयर बाजार 41.8% नीचे गया। जापान का शेयर बाजार निक्केई भी 14.9% नीचे पर बंद हुआ, जो उस समय की सबसे बड़ी गिरावट थी।
इसका असर ये हुआ कि निवेशकों का भरोसा डगमगा गया, और कई छोटे ट्रेडर्स बर्बाद हो गए।
कई लोगों को लगा कि यह 1929 की तरह मंदी की शुरुआत है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। फेडरल रिजर्व ने तुरंत ब्याज दरें कम कीं और बाजार में नकदी डाली।
1989 तक दुनियाभर के शेयर बाजार इससे उबर गए।
2008- लेहमैन ब्रदर्स डूबा तो टूटा अमेरिकन ड्रीम, द ग्रेट रिसेशन आया

2000 के दशक की शुरुआत में अमेरिका में सब कुछ चमक रहा था। इकोनॉमी बढ़ रही थी, और हर कोई अपने ‘अमेरिकन ड्रीम’ को सच करने में जुटा था। ‘अमेरिकन ड्रीम’ शब्द ग्रेट डिप्रेशन 1929 के बाद आया था। तब लोग गरीबी में जी रहे थे और उन्हें इस शब्द ने एक उम्मीद दी थी।

अमेरिकन ड्रीम का मतलब मेहनत से सब हासिल करना। एक घर, एक गाड़ी और एक अच्छी जिंदगी। बैंकों और सरकार ने इसे आसान बना दिया। ब्याज दरें कम थीं, और घर खरीदना पहले से कहीं सस्ता लग रहा था। बैंक इसके लिए बेहिसाब कर्ज दे रहे थे।

लोग लोन से घर खरीदने लगे और बेचकर तगड़ा मुनाफा बनाने लगे। अमेरिका के कई शहरों में 2006 तक घरों की कीमतें आसमान छूने लगीं। महज पांच साल में यह दोगुनी-तिगुनी हो गईं।

लेखक माइकल लेविस अपनी किताब ‘द बिग शॉर्ट’ में लिखते हैं- लास वेगास में एक वेटर तीन घर खरीद रहा था, मियामी में एक ड्राइवर चार। बैंकर बोनस कमा रहे थे और सरकार चुप थी।

2006 के अंत तक हवा बदलने लगी। बैंकों ने ब्याज दरें बढ़ाईं। इस वजह से घरों की कीमतें जो 10% सालाना बढ़ रही थीं, अब गिरने लगीं। कीमतें गिरने का नुकसान ये हुआ कि कर्ज लेने वाले अपना कर्ज नहीं चुका पा रहे थे। 2007 के अंत तक कर्ज न चुका पाने की वजह से लाखों घरों को जब्त कर लिया गया।

इस वजह से घरों की कीमतें 30% तक गिर गईं। सितंबर 2008 में अमेरिका का चौथा सबसे बड़ा बैंक लेहमैन ब्रदर्स दिवालिया हो गया। इस खबर से बाजार में सुनामी आ गई। एक दिन डाउ जोंस 4.4% गिर गया। एक हफ्ते में यह 777 अंक नीचे गिर चुका था, जो 9/11 के हमले के बाद सबसे बड़ी गिरावट थी।

लेहमैन के दिवालिया होने की वजह से बैंकों ने एक दूसरे को उधार देना बंद कर दिया। इससे क्रेडिट मार्केट ठप पड़ गया। 2007 में अमेरिकी शेयर बाजार 14 हजार के ऊपर था, वह मार्च 2009 तक करीब 6500 अंक तक गिर गया था। 8 ट्रिलियन डॉलर की संपत्ति बर्बाद हो चुकी थी।

मंदी में भारत का शेयर बाजार 52% गिरा, प्राइवेट नौकरियों का क्रेज कम हुआ

यह आर्थिक तबाही दुनियाभर में दिखी। 2008 के अंत तक ब्रिटेन का शेयर मार्केट 31%, जर्मनी का 40%, जापान का 42% और भारत का 52% गिर चुका था। आइसलैंड का तो पूरा बैंकिंग सिस्टम ही फेल हो चुका था।
अमेरिका में 26 लाख नौकरियाँ गईं। बेरोजगारी 10% तक पहुंच चुकी थी। दुनियाभर में लाखों लोग बेघर हो गए। दुनिया के बाजार को इससे उबरने में 5 साल लग गए।
2008 की मंदी में प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में बहुत बड़ी गिरावट आई। मंदी के चलते कंपनियों ने कर्मचारियों को निकाला, नई भर्तियां रोकीं, और कई बिजनेस बंद हो गए।
मंदी के दौरान डेढ़ साल में सिर्फ अमेरिका में 87 लाख नौकरियां चली गईं। बैंक और कार इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा नौकरियां गईं।
भारत में भी 2008 की मंदी का असर पड़ा। अमेरिकी कंपनियों पर निर्भर भारतीय IT फर्म्स से छंटनी हुई।
ILO रिपोर्ट 2009 के मुताबिक, भारत में 2008-09 में 10-15 लाख नौकरियां गईं। ये सभी छंटनी प्राइवेट सेक्टर में हुई। इस वजह से भारत में प्राइवेट नौकरी पर लोगों का यकीन कम हुआ। सरकारी नौकरियों के प्रति मोह बढ़ा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

बिन्नू रानी बोली-बंगला कितनो बड़ौ है, दिग्गी ने कहा-सरकारी है     |     बीकॉम की छात्रा से रेप:मंगेतर ने शादी से इनकार किया, पीड़िता थाने पहुंची     |     इंदौर में नाबालिग बेटी दे पाएगी पिता को लिवर     |     अलका याग्निक को न्यूरो डिसीज, सुनाई देना बंद हुआ     |     मणिपुर में उपद्रवियों ने CRPF की बस में आग लगाई     |     हिंदुजा फैमिली पर घरेलू स्टाफ से क्रूरता के आरोप     |     गंभीर ने टीम इंडिया के कोच का इंटरव्यू दिया     |     ज्येष्ठ पूर्णिमा को सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने की है परंपरा     |     18 JUNE 2024     |     ब्राजील के खेतों में पहुंचे शिवराज,देखी आधुनिक खेती की तकनीकें     |     बैतूल में दादा की कुकर से मारकर की हत्या:पति-पत्नी के विवाद में समझाने गए थे     |     भोपाल में हिस्ट्रीशीटर बदमाशों ने किया था पत्रकारों पर हमला     |     इंदौर में बैंक को बम से उड़ाने की धमकी:मैनेजर को भेजा ईमेल, कहा- रिमोट कंट्रोल से करेंगे ब्लास्ट     |     ‘धनश्री जैसी दिखती हूं इसलिए मुझे रॉयल्टी मिलनी चाहिए     |     नड्डा की जगह कौन, शाह के घर हुई अहम बैठक     |     वक्फ कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश:नियुक्तियां रोकीं     |     उपराष्ट्रपति बोले- अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं     |     यूक्रेन ने चीनी सैनिकों को मीडिया के सामने पेश किया     |     IPL में MI vs SRH:अभिषेक शर्मा 40 रन बनाकर आउट, हार्दिक पंड्या ने कैच कराया     |