29 मार्च को शनि का राशि परिवर्तन और सूर्य ग्रहण

29 मार्च को शनि का राशि परिवर्तन और सूर्य ग्रहण
धर्म, ज्योतिष और विज्ञान के नजरिए से 29 और 30 मार्च को कई बड़ी घटनाएं होंगी। 29 को शनि का राशि परिवर्तन और सूर्य ग्रहण है। 30 तारीख से नवसंवत् 2082 शुरू हो रहा है।

मकर राशि से उतरेगी और मेष राशि पर आएगी साढ़ेसाती

नौ ग्रहों का न्यायाधीश शनि सबसे धीमा चलने वाला ग्रह है। ये एक राशि में करीब ढाई साल रुकता है। इसी वजह से कुछ राशियों पर शनि का सीधा असर लंबे समय तक बना रहता है। 29 मार्च को शनि राशि बदलकर कुंभ से मीन राशि में आ जाएगा।
शनि के राशि बदलने से राशियों की साढ़ेसाती और ढय्या भी बदलेगी। मकर राशि से साढ़ेसाती उतरेगी और मेष राशि पर शुरू होगी। कुंभ और मीन राशि पर साढ़ेसाती चल ही रही है।
कर्क और वृश्चिक राशि ढय्या उतर जाएगी। 29 मार्च के बाद सिंह और धनु राशि पर ढय्या शुरू हो जाएगी।
13 जुलाई को शनि वक्री हो जाएगा और 28 नवंबर को फिर से मार्गी हो जाएगा। 29 मार्च के बाद पूरे साल शनि मीन राशि में ही रहेगा।
शनि के अशुभ असर को कम करने के लिए हर शनिवार शनि की पूजा करनी चाहिए। शनि के मंत्र ऊँ शं शनैश्चराय नम: का जप करें। शनि को तेल चढ़ाएं।

चैत्र अमावस्या पर होगा सूर्य ग्रहण

29 मार्च को चैत्र मास की अमावस्या है। इस दिन शनि का राशि परिवर्तन और सूर्य ग्रहण होगा। ये सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखेगा। इस कारण हमारे यहां सूर्य ग्रहण का सूतक नहीं रहेगा। चैत्र अमावस्या से जुड़े सभी धर्म-कर्म पूरे दिन किए जा सकेंगे।
ये सूर्य ग्रहण नॉर्थ-वेस्ट अफ्रीका, यूरोप, नॉर्थ रूस में दिखाई देगा। ग्रहण भारतीय समय अनुसार दोपहर 2.21 बजे शुरू होगा और शाम 6.14 बजे खत्म होगा।
चैत्र अमावस्या की दोपहर में पितरों के लिए धूप-ध्यान करें। इस दिन पवित्र नदी में स्नान और तीर्थ दर्शन करना चाहिए।

नव संवत् 2082 30 मार्च से होगा शुरू

30 मार्च से हिन्दी पंचांग का नव संवत् (विक्रम संवत्) 2082 शुरू होगा। इस दिन गुड़ी पड़वा मनाई जाएगी और चैत्र नवरात्रि की शुरूआत होगी।
विक्रम संवत् की शुरुआत उज्जैन (मप्र) के राजा विक्रमादित्य ने की थी। विक्रम संवत की शुरुआत 57 ईसा पूर्व में हुई थी।
ये संवत् चंद्र-सौर की स्थियों पर आधारित है। हिंदू त्योहारों, शुभ मुहूर्त और ज्योतिषीय गणनाएं इसके आधार पर की जाती हैं।
इस पंचांग में एक वर्ष करीब 354-355 दिन का होता है। इस पंचांग में अतिरिक्त दिनों का तालमेल अधिक मास से व्यवस्थित होता है।
चैत्र नवरात्रि की शुरुआत में देवी दुर्गा की विशेष पूजा करें। देवी मां लाल चुनरी चढ़ाएं। दुं दुर्गायै नम: मंत्र का जप करें।

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