भगवान गणेश के साथ शनि की पूजा का शुभ योग
आज (1 फरवरी) माघ शुक्ल चतुर्थी यानी तिलकुंद चतुर्थी है। इस तिथि पर भगवान गणेश के लिए व्रत किया जाता है। शनिवार को ये तिथि होने से इसका महत्व और अधिक बढ़ गया है। गणेश जी के लिए व्रत-उपवास करें और इसके साथ ही शनिदेव की भी विशेष पूजा जरूर करें। शनि पूजा से कुंडली के शनि से जुड़े दोषों का असर कम हो सकता है, ऐसी मान्यता है।
शनि के 10 नाम वाले मंत्र का करें जप
कोणस्थ पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोन्तको यम:।
सौरि: शनैश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:।।
शास्त्रों में शनि देव के दस नाम बताए गए हैं, इन दस नामों का जप करते हुए शनि पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, ऐसी मान्यता है।
ये हैं शनि के दस नाम- कोणस्थ, पिंगल, बभ्रु, कृष्ण, रौद्रान्तक, यम, सौरि, शनैश्चर, मन्द, पिप्पलाश्रय।
शनि देव की सरल पूजा विधि
शनि देव की पूजा के लिए सरसों का तेल, काले तिल, नीले या काले फूल, लोहे की बर्तन, काली उड़द की दाल, दीपक और धूपबत्ती जरूर रखें।
स्नान के बाद घर के मंदिर में भगवान गणेश, विष्णु जी की पूजा करें। इनके बाद शनि देव की पूजा करें। आप चाहें तो शनि देव के मंदिर जाकर भी पूजा कर सकते हैं।
शनि देव की प्रतिमा पर सरसों का तेल और काले तिल चढ़ाएं। तेल का दीपक जलाएं।
ऊँ शनिश्चराय नमः मंत्र का जप करें। शनि चालीसा या शनि स्तोत्र का पाठ करें। शनि के दस नामों का जप करें।
मिठाई और तिल से बने लड्डू का भोग लगाएं। सरसों का तेल और काले तिल का दान करें।
शनि देव की पूजा के बाद जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं और वस्त्र दान करें। पीपल की पूजा करें और पीपल के नीचे दीया जलाएं।
शनि के मंत्रों का जप करें
ऊँ शं शनैश्चराय नम:।
ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
ऊँ सूर्यपुत्राय विद्महे, महाकायाय धीमहि। तन्नो मंदः प्रचोदयात्।
शनि से जुड़ी ज्योतिष की मान्यताएं
शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है। यही ग्रह हमें हमारे कर्मों का फल देता है।
शनि एक राशि में करीब ढाई साल रुकता है। शनि साढ़ेसाती और ढय्या की स्थिति में सबसे ज्यादा प्रभावित करता है।
शनि धीमी गति से चलने वाले ग्रह हैं और इसका प्रभाव लंबे समय तक बना रहता है।
ये ग्रह मकर और कुंभ राशि के स्वामी है। तुला राशि में शनि उच्च का और मेष में नीच का रहता है।