वसंत पंचमी की तारीख को लेकर पंचांग भेद

वसंत पंचमी की तारीख को लेकर पंचांग भेद
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी की तारीख को लेकर पंचांग भेद हैं। इस तिथि पर मां सरस्वती का प्रकट उत्सव (वसंत पंचमी) मनाया जाता है। माना जाता है कि इसी तिथि देवी सरस्वती प्रकट हुई थीं। इस पर्व को वागीश्वरी जयंती और श्रीपंचमी भी कहते हैं। इस साल विद्या की देवी सरस्वती का प्रकट उत्सव कुछ पंचांग में 2 फरवरी और कुछ में 3 फरवरी को बताया गया है।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, वसंत पंचमी से नई विद्या सीखने की या नए कोर्स की शुरुआत करने की परंपरा है। इस तिथि पर सरस्वती देवी के साथ ही वीणा की पूजा करनी चाहिए। इस दिन ब्राह्मी नाम की औषधि का सेवन करने की भी परंपरा है। ये औषधि बुद्धि बढ़ाने वाली मानी जाती है।

माघ शुक्ल पंचमी तिथि की शुरुआत 2 फरवरी की दोपहर करीब 12.10 बजे हो रही है, ये तिथि 3 फरवरी की सुबह 10 बजे से खत्म होगी। 3 फरवरी सूर्योदय के समय पंचमी तिथि रहेगी, इस वजह से अधिकतर लोग 3 तारीख को ही वसंत पंचमी मनाएंगे।

अगर आप कोई नए विद्या सीखना चाहते हैं तो वसंत पंचमी से इसकी शुरुआत कर सकते हैं। इसके लिए जरूरी तैयारियां अभी से कर लेंगे तो वसंत पंचमी से विद्या की शुरुआत आसानी से कर पाएंगे। नई विद्या सीखने की शुरुआत करने से पहले देवी सरस्वती की विशेष पूजा जरूर करें। ऐसा माना जाता है कि माता की कृपा से विद्या या कोर्स जल्दी पूरा हो सकता है।

देवी आद्यशक्ति के पांच स्वरूपों में से एक हैं मां सरस्वती

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जब ब्रह्माजी ने इस सृष्टि की रचना की, तब देवी मां यानी आद्यशक्ति ने स्वयं को पांच भागों में बांटा था। ये पांच भाग यानी स्वरूप हैं राधा, पद्मा, सावित्रि, दुर्गा और सरस्वती।

ये दैवीय शक्तियां भगवान के विभिन्न अंगों से प्रकट हुई थीं। उस समय भगवान के कंठ से प्रकट होने वाली देवी ही सरस्वती मानी जाती हैं। भगवती सरस्वती सत्वगुण हैं। सरस्वती के अनेक नाम हैं। इन्हें वाक, वाणी, गिरा, भाषा, शारदा, वाचा, धीश्वरी, वाग्देवी आदि नामों से जाना जाता है।

देवी सरस्वती विद्या की देवी है और विद्या को सभी प्रकार के धनों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। विद्या से ही सभी तरह की सुख-सुविधा और धन-संपत्ति, मान-सम्मान प्राप्त किया जा सकता है। जिस व्यक्ति पर देवी सरस्वती प्रसन्न होती हैं, उसे महालक्ष्मी की भी कृपा मिल जाती है। विद्या से ही स्वभाव में विनम्रता आती है। इसलिए धन से भी ज्यादा विद्या को महत्व दिया जाता है।

महालक्ष्मी के साथ ही देवी सरस्वती की भी पूजा इसीलिए की जाती है। सरस्वती के बिना लक्ष्मी की कृपा नहीं मिल पाती है। विद्या का उपयोग करके सही रास्ते से जो धन कमाया जाता है, वह धन सुख-शांति और समृद्धि प्रदान करता है।

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