खरीदारी और नए कामों की शुरुआत के लिए दोपहर 1.34 तक शुभ समय

खरीदारी और नए कामों की शुरुआत के लिए दोपहर 1.34 तक शुभ समय
आज शक्ति पर्व का आखिरी दिन है। नवमी तिथि की स्वामी देवी दुर्गा ही हैं। इसलिए इस दिन देवी की महापूजा की जाती है साथ ही कन्या पूजन की परंपरा भी है। नवरात्रि की नौवीं देवी सिद्धिदात्री की पूजा के साथ इस दिन नवरात्रि खत्म हो जाती है। ये मन्वादि तिथि भी है। इसलिए स्नान-दान और श्राद्ध करने की भी परंपरा है। नवरात्रि में नवमी तिथि के दिन बंगाल में धुनुची नृत्य के साथ देवी की महापूजा की जाएगी। इस बार नवमी तिथि पर खरीदारी और नए कामों की शुरुआत के लिए 2 शुभ योग बन रहे हैं।

पूरे दिन रहेगी नवमी तिथि, 2 शुभ योग भी
नवमी तिथि 13 अक्टूबर की रात तकरीबन 11.21 से शुरू होगी और 14 अक्टूबर को रात 9.27 तक रहेगी। इसलिए नवमी पर होने वाली देवी महापूजा गुरुवार को की जाएगी। गुरुवार को नवमी तिथि में सूर्योदय होने से इस दिन स्नान-दान और श्राद्ध करने से पूरा फल मिलेगा।
ज्योतिषाचार्य डॉ. मृत्युंजय तिवारी बताते हैं कि देवी सिद्धिदात्री की पूजा के लिए दिन में सूर्योदय से दोपहर तकरीबन 1.34 तक रवियोग और यायीजय शुभ योग बनेगा। महानवमी पर बनने वाले इस शुभ में नए बिजनेस और नए काम की शुरुआत करने से सौभाग्य बढ़ेगा। इस दिन सोना, चांदी और अन्य कीमती धातुओं के साथ नए कपड़ों की खरीदारी भी की जा सकेगी।

महानवमी पर महिषासुर मर्दिनी की पूजा
नवरात्रि की नवमी तिथि पर देवी के महिषासुर मर्दिनी रूप की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक माना जाता है कि महानवमी पर ही देवी ने राक्षस महिषासुर का वध किया था। इसके बाद देवताओं और ऋषियों ने देवी को प्रणाम कर उनकी महापूजा की थी। तब से नवमी तिथि पर देवी की महापूजा की परंपरा चली आ रही है। इस दिन हवन और महापूजा के साथ देवी उत्सव खत्म हो जाता है। देवी के इस रूप की पूजा करने से हर तरह की परेशानियां खत्म हो जाती हैं और दुश्मनों पर जीत मिलती है।

स्नान-दान और श्राद्ध की परंपरा
ज्योतिष और धर्म ग्रंथों में अश्विन शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को मन्वादि तिथि कहा गया है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक हर प्रलय के बाद जिस तिथि को फिर से सृष्टि की शुरुआत हुई उसे मन्वादि तिथि कहते हैं। इस दिन दक्ष मन्वंतर शुरू होने से इसे बहुत ही शुभ दिन माना जाता है। इसलिए इस दिन तीर्थ स्नान करने से जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं। नवरात्रि की नवमी तिथि पर अन्न, वस्त्र और अन्य चीजों का दान करने से अक्षय पुण्य भी मिलता है। इस तिथि पर श्राद्ध की भी परंपरा है। इससे पितरों को संतुष्टि मिलती है।

बंगाल में धुनुची नृत्य
बंगाल में नवमी तिथि पर देवी की महापूजा की जाती है। इस महापूजा में माता को मोर पंख से हवा दी जाती है, कमल के फूल से जल छिड़का जाता है। फिर उन्हें दर्पण दिखाने के बाद शंख बजाकर आरती की जाती है। इसके बाद धुनुची नृत्य किया जाता है। ये असल में शक्ति नृत्य है। बंगाल पूजा परंपरा में ये नृत्य मां भवानी की शक्ति और ऊर्जा बढ़ाने के लिए किया जाता है। इस पारंपरिक पवित्र नृत्य में नारियल की जटा, रेशे और हवन सामग्री यानी धुनी रखी जाता है। फिर उसी से मां की आरती भी की जाती है।

महापूजा से नौ दिनों की आराधना का फल
पूरी नवरात्रि में अगर देवी पूजा और व्रत-उपवास नहीं कर पाएं तो नवमी पर देवी की महापूजा करने से ही नौ दिनों की देवी आराधना का फल मिल सकता है। मार्कंडेय पुराण के मुताबिक इस दिन हर तरह की पूजन सामग्री से देवी दुर्गा की विशेष पूजा करनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती का पाठ और हवन करवाने से देवी का आशीर्वाद मिलता है। नवरात्र की महानवमी पर बिना कुछ खाए देवी पूजा करने से हर तरह की परेशानियां दूर होती हैं। साथ ही सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और मानसिक शांति भी मिलती है। इस दिन व्रत-उपवास से कई तरह की बीमारियां भी दूर हो जाती हैं।

कन्या भोजन का दिन
नवरात्रि में महापूजा वाले इस दिन कन्या भोज करवाने से देवी उपासना का पूरा फल मिलता है। नौ दिनों तक कन्या भोजन नहीं करवा सकते तो नवमी तिथि पर कन्याओं की पूजा और भोज करवाने से देवी अन्नपूर्णा और महालक्ष्मी की कृपा भी मिलती है। इस दिन एक कन्या का पूजन करने से ऐश्वर्य, दो की पूजा से मोक्ष, तीन कन्याओं की पूजा से धर्म, चार से राज्य पद, पांच की पूजा करने से विद्या, छह को पूजने से सिद्धि, सात की पूजा करने से राज्य, आठ की पूजा से संपदा और नौ कन्याओं को पूजने से प्रभुत्व की प्राप्ति होती है। इस दिन महालक्ष्मी को खीर का भोग लगाने से जीवनभर सुख-समृद्धि बनी रहती है।

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