*कुछ नहीं के बारे में बहुत कुछ!*
*”नमस्कार भाई, टिकट ले लिजिए टिकट.. “, बस कंडक्टर ने एक बस सवार आदमी से कहा।*
*वह आदमी एक विशाल कद-काठी का था। उसकी छह फीट ऊंचाई थी, एक पहलवान की तरह उसके हाथ जमीन पर लटके हुए थे।*
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*उसने कंडक्टर की ओर देखा और कहा, “बिग जॉन को टिकट लेने की जरूरत नहीं है!” और वह पीछे जाकर बैठ गया।*
*क्या मैंने आपको अब तक यह बताया की कंडक्टर पाँच फीट तीन इंच लंबा, पतला-दुबला और नम्र इंसान था? हाँ, वह ऐसा ही था!*
*स्वाभाविक रूप से कंडक्टर ने बिग जॉन के साथ बहस नहीं की, लेकिन वह इस व्यवहार से खुश नहीं था। वह चुपचाप आगे बढ़ गया।*
*अगले दिन वह आदमी फिर मिल गया। कंडक्टर ने फिर उससे टिकट के लिए पुछा, “मैं कभी टिकट नहीं लेता।” फिर वहीं उत्तर मिला।*
*उसके अगले दिन वह बस में फिर चढ़ा और फिर उसने टिकट नहीं लिया। अगले कई दिनों तक यहीं सिलसिला चलता रहा।*
*बस कंडक्टर उससे परेशान हो गया। बिग जॉन जिस तरह से उसका फायदा उठा रहा था, उसकी नींद उड़ गई थी।*
*अंत में वह इसे बर्दाश नहीं कर सका। और वह किसी भी तरह अपने इस तनाव से छुटकारा पाना चाहता था। उसका चैन खो गया था।*
*आखिरकार उसे एक रास्ता मिला उस कंडक्टर ने एक महीने की छुट्टी ले कर बॉडी बिल्डिंग कोर्स, कराटे, जूडो और सभी अच्छी चीजों में दाखिला लिया।*
*गर्मियों के अंत तक, वह काफी ताकतवर हो गया; उसमे आत्मविश्वास आ गया था, वह अपने बारे में वास्तव में अच्छा महसूस कर रहा था।*
*अगले सोमवार को, जब बिग जॉन एक बार फिर बस में चढ़ा और कहा, “बिग जॉन टिकट का भुगतान नहीं करेगा!” तब कंडक्टर ने उसकी ओर देखा और चिल्लाकर कहा, “क्यों नहीं करेगा?”*
*उसके चेहरे को आश्चर्य से देखने के साथ, बिग जॉन ने उत्तर दिया, “बिग जॉन के पास बस का पास है इसलिए।”*
*उसका जवाब सुनकर बस कंडक्टर एक पल के लिए अवाक रह गया। जाहिर है, उसने इतनी छोटी सी बात का बतंगड़ बना दिया था*
*उसने महसूस किया वह स्थिति को समझने में असफल रहा!*
*जीवन में अक्सर, हम समस्याओं का आवश्यकता से अधिक मूल्यांकन करते हैं और समय, पैसा, मेहनत, और ऊर्जा खर्च करते हुए विशाल समाधानों पर काम करना शुरू कर देते हैं, जबकि, वास्तव में, समस्याएं अन्तोगत्वा इतनी बड़ी होती ही नहीं हैं!*
*बिग जॉन के विशाल आकार का सामना करने के डर और हिचकिचाहट ने न केवल गलतफहमी की स्थिति पैदा कर दी बल्कि उस व्यक्ति के बारे में एक खराब राय भी बना ली!*
*जब हम लोगों को केवल उनके क्षणिक उपस्थिति के आधार पर आंकते हैं , तो हम शायद वास्तविक सच्चाई को नजरअंदाज कर देते हैं। हम दूसरे व्यक्ति के बारे में अपनी कल्पनाओं के पहाड़ बनाते चले जाते हैं। लेकिन बाद में जब शंकाओं और भ्रांतियों के बादल छंट जाते हैं और सच्चाई आखिरकार हमारे सामने आती है, तो हमें शर्मिंदगी महसूस होती है और अक्सर पछताना पड़ता है!*
*हमारा अधिकांश जीवन वास्तव में उपरोक्त कहानी के समान है!*
*किसी का आंकलन करना यानि उसमें हमारे रूढ़िवादी भय का प्रतिबिंब पहचानना…..*
*दूसरों की जगह अपने आप को रखकर सोचने और हर स्थिति को उनके दृष्टिकोण से देखने की क्षमता, हमें एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करेगी और इससे हम , परिस्थिति को बेहतर समझ सकेंगे!*
*”भय या शंका से सत्य को जाना नहीं जा सकता।”*
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*मंगलमय प्रणाम*
*सदैव प्रसन्न रहिये*
*जो प्राप्त है,पर्याप्त है!!*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है।*
*प्रभु सबका कल्याण करें*
*श्री राम जय राम जय जय राम*