सुख-समृद्धि के प्रतीक होते हैं पूजा में जवारे
नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा जवारों के बगैर अधूरी है। घर हो या पूजा पंडाल हर जगह माता के दरबार में जवारे अवश्य ही मिलेंगे। दरअसल इस पवित्र विधि में कलश के सामने मिट्टी के पात्र में जौ को बोते हैं।
जौ को ही जवारे कहते हैं
जौ को ही ज्वारे भी कहते हैं। नवरात्रि के दिनों में मंदिर, घर और पूजा के पंडालों में मिट्टी के बर्तन में ज्वारे बोये जाते हैं। नियमित रूप से इनमें जल अर्पित किया जाता है। जिससे ये धीरे-धीरे अंकुरित होकर बढ़ते हैं और हरी-भरी फसल की तरह लगते हैं। नवरात्रि के समापन पर इन्हें बहते हुए जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।
क्यों बोया जाता है जौ
नवरात्रि में जौ बोने की इस परंपरा के पीछे तर्क यह है कि सृष्टि के आरंभ में जौ ही सबसे पहली फसल थी। जौ बोने की यह प्रथा हमें यह सीख देती है कि हम सदैव अपने अन्न और अनाज का सम्मान करें। इस फसल को हम देवी मां को अर्पित करते हैं। इस जौ (जवारे) को उगाया जाता है। पूजा घर में जमीन पर जौ को बोते समय मिट्टी में गोबर मिलाकर मां दुर्गा का ध्यान करते हुए जौ बोए जाते हैं।
जवारों से जुड़ीं 3 खास बातें
जौ बोने का एक अन्य पौराणिक मुख्य कारण व धार्मिक मान्यता है कि अन्न ब्रम्हा है। इसलिए अन्न का सम्मान करना चाहिए।
इसे हवन के समय देवी-देवताओं को भी अर्पित किया जाता है।
जौ अगर तेजी से बढ़ते हैं तो घर में सुख-समृद्धि आती है। यदि यह मुरझाएं और ठीक से ना बढ़ें तो अशुभ माना जाता है।
नवरात्रि के दौरान की जाने वाली कलश स्थापना के समय उसके नीचे रेत रखकर जल एक लोटा चढ़ाने का महत्व है।