परमाणु वैज्ञानिक डॉ अब्दुल कदीर खान की 85 साल की उम्र में निधन

परमाणु वैज्ञानिक डॉ अब्दुल कदीर खान की 85 साल की उम्र में निधन
इस्लामाबाद। पाकिस्तान के सबसे बड़े न्यूक्लियर साइंटिस्ट डॉ अब्दुल कदीर खान का रविवार सुबह 85 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने मुस्लिम देशों का पहला एटॉमिक बम बनाया था, इसलिए उन्हें इस्लामिक न्यूक्लियर बम का जनक कहा जाता है। उन पर कई देशों को परमाणु तकनीक बेचने के आरोप भी लगे थे। उन्हें शनिवार रात को सांस लेने में तकलीफ हुई थी जिसके बाद उन्हें रविवार सुबह अस्पताल पहुंचाया गया। रविवार सुबह उनका निधन हो गया।

न्यूक्लियर टेस्ट करने के बाद बन गए थे पाकिस्तानी हीरो
भारत ने मई 1998 में राजस्थान के पोखरण में पांच न्यूक्लियर बम का परीक्षण किया था। इसके जवाब के तौर पर डॉ कदीर की अगुआई में पाकिस्तान ने भी न्यूक्लियर परीक्षण किया। इसके बाद वे सिर्फ पाकिस्तान में ही नहीं, बल्कि इस्लामिक दुनिया में हीरो बन गए थे। इस परीक्षण के बाद पाकिस्तान परमाणु हथियार रखने वाला मुस्लिम देशों में अकेला और दुनिया का सातवां देश बन गया।

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में जन्मे थे अब्दुल कदीर
अब्दुल कदीर खान का जन्म 1 अप्रैल 1936 को मध्य प्रदेश के भोपाल में हुआ था। बंटवारे के समय उनका परिवार पाकिस्तान चला गया। डॉ कदीर खान पाकिस्तान के पहले नागरिक थे, जिन्हें तीन प्रेसिडेंशियल अवॉर्ड दिए गए। उन्हें दो बार निशान-ए-इम्तियाज और एक बार हिलाल-ए-इम्तियाज से सम्मानित किया गया था।

कई देशों परमाणु टेक्नोलॉजी बेचने का आरोप लगा था
1998 में US न्यूज वीक मैगजीन ने एक रिपोर्ट पब्लिश करके डॉ खान पर आरोप लगाया था कि उन्होंने इराक को न्यूक्लियर सीक्रेट बेचे। कुछ साल बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने खुफिया जांच कराई, जिसमें सामने आया कि डॉ खान ने ईरान, नॉर्थ कोरिया, लीबिया और इराक को भी न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी बेची है।

इसके बाद जब डॉ खान ने अपने ऊपर लगे आरोपों को कबूला, तो तत्कालीन पाकिस्तान राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने 2002 में उन्हें न्यूक्लियर प्रोग्राम से हटा दिया। इस कबूलनामे ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया में हडकंप मचा दिया था। US टाइम मैगजीन ने उन्हें मर्चेंट ऑफ मेनेस यानी तबाही का सौदागर नाम दिया था।

2004 में उन्हें हाउस अरेस्ट में रखा गया। उनकी गिरफ्तारी और मुशर्रफ सरकार का अमेरिकी सरकार की तरफ झुकाव देखते हुए कई राजनीतिक पार्टियां और पाकिस्तानी नागरिक उनके समर्थन में उतर आए और उन्हें राष्ट्रीय हीरो बना दिया गया। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री युसुफ रजा गिलानी ने उनके खिलाफ सारे आरोपों को हटा दिया।

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