देवी को अपना रक्षक मानते थे चंबल के डकैत
ग्वालियर। मध्य प्रदेश में कई चमत्कारिक मंदिर हैं। इन्हीं में से एक है दतिया का रतनगढ़ माता का मंदिर। इसके चमत्कारों की कहानी दूर-दूर तक फैली हुई है। विंध्याचल पर्वत पर रतनगढ़ देवी का प्रसिद्ध मंदिर विद्यमान है। कहते हैं यहां कि मिट्टी या भभूत शरीर पर लगाने भर से बड़े से बड़ा जहर उतर जाता है, इसलिए यहां दीपावली की भाई दूज पर सर्पदंश के इलाज के लिए मेला भी लगता है।
दतिया जिला मुख्यालय से 65 किलोमीटर दूर मर्सेनी (सेंवढ़ा) गांव है। यहां एक मंदिर रतनगढ़ मां का और दूसरा ठीक सामने कुंवर बाबा मंदिर का है। कुंवर बाबा, मां रतनगढ़ देवी के भाई हैं। मान्यता है कि मां के दर्शन के बाद यदि कुंवर बाबा के दर्शन न किए जाएं तो मां के दर्शन पूर्ण नहीं माने जाते हैं। रतनगढ़ माता मंदिर डकैतों के आराध्य स्थल के रूप में भी विख्यात है। ‘MP के देवी मंदिरों के दर्शन’ सीरीज के पार्ट-8 में जानते हैं रतनगढ़ वाली माता मंदिर की कहानी…
मंदिर के आसपास बहती है सिंध नदी
दतिया स्थित मां रतनगढ़ का मंदिर पहाड़ी पर है। बताते हैं कि कभी यहां किला हुआ करता था। जो कई सौ साल पहले भूमिगत हो गया और उस पर यह मंदिर स्थापित हुआ है। इसके पास से सिंध नदी बहती है, जो दो तरफ से मंदिर को घेरती है। प्रत्येक नवरात्र में लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां माता के दर्शन के लिए आते हैं और मन्नत मांगते हैं।
ये है मां रतनगढ़ की मान्यता
स्थानीय लोगों और यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मान्यता है कि रतनगढ़ माता मंदिर की मिट्टी और भभूत में बहुत शक्ति है। जो कोई बीमार यहां की भभूत खाता है, उसके सारे रोग दूर हो जाते हैं। इतना ही नहीं जहरीले जीवों का जहर भी बेअसर हो जाता है।
कुंवर बाबा के दर्शन से सर्पदंश का इलाज
कुंवर बाबा के बारे में मान्यता है कि जब वे जंगल में शिकार करने जाते थे, तब सारे जहरीले जानवर अपना विष बाहर निकाल देते थे। इसीलिए जब किसी इंसान को कोई विषैला जीव (सांप, बिच्छु) काट लेता है, तो उसके घाव पर कुंवर महाराज के नाम का बंधन लगाते हैं। जहर से पीड़ित लोग दिवाली की भाई दूज पर कुंवर महाराज के मंदिर में दर्शन करते हैं। लोग कहते हैं कि भाईदूज पर यहां 20 से 25 लाख लोग पहुंचते हैं।
मां मांडुला ने जंगल में ली थी समाधि
प्रसिद्ध रतनगढ़ माता के मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। ऐसा प्रचलित है कि महाराज रतन सिंह के किले पर कब्जा करने की नीयत से मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी ने 1296 से 1321 के बीच साजिश रची थी। खिलजी ने सेंवढ़ा से रतनगढ़ आने वाला पानी बंद करा दिया था। तब राजकुमारी मांडूला और उनके भाई कुंवर गंगा रामदेव ने अलाउद्दीन खिलजी के फैसले का कड़ा विरोध किया था।
रतन सिंह की बेटी मांडुला पर भी अलाउद्दीन खिलजी की बुरी नजर थी। यही कारण था कि विरोध के बाद खिलजी ने वर्तमान मंदिर रतनगढ़ वाली माता के परिसर में बने किले पर आक्रमण कर दिया। आक्रमणकारियों की बुरी नजर से बचने के लिए राजकुमारी मांडुला ने जंगल में समाधि ले ली और धरती मां से प्रार्थना की, कि वो उन्हें अपनी गोद में स्थान दें।
लोग ऐसा कहते हैं कि धरती में हुई एक दरार में वह समा गई थी। इन्हीं राजकुमारी माडुंला को मां रतनगढ़ वाली माता के रूप में पूजा जाता है। साथ ही मां रतनगढ़ के भाई राजकुमार कुंवर गंगा रामदेव भी युद्ध में शहीद हो गए। इसके बाद इसी मंदिर में कुंवर बाबा के रूप में उनकी भी पूजा की जाने लगी।
छत्रपति शिवाजी ने कराया था मंदिर का निर्माण
विंध्याचल पर्वत पर विराजमान मां रतनगढ़ का मंदिर छत्रपति शिवाजी के मुगल साम्राज्य पर विजय की निशानी है। मान्यता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगलों के बीच युद्ध हुआ था। उस समय शिवाजी को हार मिली थी। तब रतनगढ़ वाली माता और कुंवर बाबा ने शिवाजी महाराज के गुरु रामदास को देवगढ़ के किले में दर्शन दिए थे और शिवाजी को मुगल साम्राज्य से फिर से युद्ध के लिए प्रेरित किया था।
मां के आशीर्वाद के बाद शिवाजी ने मुगल सेना से फिर युद्ध किया और मुगल साम्राज्य को पराजय का सामना करना पड़ा। इसके बाद शिवाजी ने मंदिर का निर्माण कराया था।
बीहड़ के डाकू मां को मानते थे आराध्य देवी
बीहड़, बागी और बंदूक के लिए चर्चित ग्वालियर-चंबल का डकैतों से नाता सैकड़ों साल पुराना है। रतनगढ़ वाली माता वीरों और शक्ति की प्रतिमूर्ति हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां कई कुख्यात डकैत रहा करते थे। रतनगढ़ वाली माता मंदिर में चंबल इलाके के सभी डकैत पुलिस को चुनौती देते हुए नवरात्र में दर्शन करने आते थे और घंटा चढ़ाते थे।
कई बार ऐसा हुआ है कि पुलिस पहरा देती रही और डकैत घंटा चढ़ाकर निकल गए। डकैत मानते थे कि मां उनकी रक्षा करती हैं। बड़े डकैतों में मान सिंह, जगन गुर्जर, माधव सिंह, मोहर सिंह, मलखान सिंह से लेकर फूलन देवी ने माता के चरणों में माथा टेका और घंटा चढ़ाकर आशीर्वाद लिया है।
रतनगढ़ पर चढ़ाए घंटों की होती थी नीलामी
मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु हर साल हजारों घंटे मां के दरबार में चढ़ाते हैं। मंदिर में जमा हुए घंटों की पहले नीलामी की जाती थी। साल 2015 में प्रशासन की पहल पर यहां एकत्रित घंटों को गलवाकर विशाल घंटा बनाया गया था और इसे रतनगढ़ माता मंदिर पर नवरात्र में 16 अक्टूबर 2015 को चढ़ाया गया था। देश के सबसे वजनी इस पीतल के घंटे को तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने चढ़ाया था।
बताते हैं कि इस विशाल घंटे की ऊंचाई 6 फीट और गोलाई 13 फीट है। इसे नौ धातुओं से मिलाकर बनाया गया था। इस घंटे की खासियत है कि 4 साल के बच्चे से लेकर 80 साल का बुजुर्ग भी आसानी से बजा सकते हैं। इस विशाल घंटे को टांगने के लिए लगाए गए एंगल और उन पर मढ़ी गई पीतल और घंटे के वजन को जोड़ा जाए तो लगभग 51 क्विंटल होता है।