बोले-रमन को अस्पताल के बजाय मॉर्च्युरी भेज दिया; किसान हों या भाजपा, किसी ने नहीं पूछा

बोले-रमन को अस्पताल के बजाय मॉर्च्युरी भेज दिया; किसान हों या भाजपा, किसी ने नहीं पूछा
घर में मातम पसरा है, आने-जाने वालों की भीड़ है, मां बेसुध पड़ी है और वो 11 साल की बच्ची अपने दो-ढाई साल के भाई की हर तरह से देखभाल में व्यस्त है। ये लखीमपुर हिंसा में मारे गए पत्रकार रमन कश्यप की बेटी वैष्णवी है, जिसने अपने आंसुओं को बमुश्किल आंखों में छुपा लिया है और अपने पिता की मौत के दुख को अपने भाई तक ना पहुंचने देने की हरसंभव कोशिश कर रही है। वह जानती है कि उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं और वो कभी लौटकर नहीं आएंगे। वह ये भी जान गई है कि अब उसकी जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं।
रमन के घरवालों ने भाजपा और किसानों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि रमन को अस्पताल पहुंचाने के बजाय मॉर्च्युरी भेज दिया गया। अगर समय से उन्हें अस्पताल भेज दिया जाता तो जान बच जाती। किसानों ने सिर्फ किसानों की मदद की। बाद में भाजपा वालों ने भी नहीं पूछा। उन्होंने रमन की पीटकर या गोली मारकर हत्या करने की बात को खारिज करते हुए कहा कि उनकी मौत गाड़ी से कुचलने से हुई है। उनके शरीर पर घसीटने के निशान थे।
रमन कश्यप के घर में मौजूद उनके दोस्त और रिश्तेदार कहते हैं कि तिकुनिया में हुए घटनाक्रम के बाद किसानों और BJP समर्थकों की मौत को तो खूब मुद्दा बनाया गया, लेकिन किसी ने पत्रकार की मौत की परवाह नहीं की।
बच्चों से अच्छी तरह पढ़ने की बात कहकर घर से निकले थे
रमन कश्यप 3 अक्टूबर की दोपहर 12 बजे के करीब जब घर से कवरेज करने के लिए निकले थे तब बेटी ने ही बाय कहकर उनके लिए दरवाजा बंद किया था। हमेशा की तरह ही जाते-जाते उन्होंने उससे कहा था- अच्छे से पढ़ाई करना।
घर के एक कोने में रमन की पत्नी आराधना देवी बेसुध बैठी हैं। आराधना के मुताबिक रमन कश्यप की हमेशा से सोच यही थी कि सच का साथ दिया जाए और सच को उजागर किया जाए और इसके लिए ही वे पत्रकारिता में आए थे।
वे कहती हैं, ‘वे एक शिक्षक थे, उनकी हमेशा से यही सोच थी कि सच का साथ दिया जाए। इसलिए ही वे पढ़ाने के साथ-साथ पत्रकारिता भी करने लगे थे। उन्हें लोगों की मदद करना बहुत पसंद था। उन्हें लगता था कि पत्रकारिता के जरिए वे लोगों की और भी ज्यादा मदद कर पाएंगे। वे अपने बच्चों से बहुत प्यार करते थे और हमेशा समय पर घर लौटने की कोशिश करते थे। शाम होते-होते घर आ जाते थे, लेकिन उस दिन नहीं आए, मुझे लग रहा था कि कुछ देर में लौट आएंगे। मैंने ये नहीं सोचा था कि मेरी दुनिया ही लुट जाएगी।’
रमन कश्यप के परिजनों के मुताबिक उन्होंने कुछ महीने पहले ही पत्रकारिता शुरू की थी और वो टीवी चैनल के लिए खबरें भेजा करते थे। इसके लिए उन्हें कोई तय वेतन मिलता था या नहीं इसकी जानकारी परिजनों को नहीं है।
अगले दिन सुबह पुलिस ने दी जानकारी, मॉर्च्युरी की जमीन पर रखा था शव
रमन के भाई पवन सरकार और किसान दोनों से नाराज हैं। उनका कहना है कि रमन को वक्त पर इलाज मिलता तो शायद उनकी जान बच जाती।
रमन के छोटे भाई पवन के मुताबिक जब तिकुनिया घटना के बाद उन्होंने अपने भाई के फोन पर संपर्क किया तो उनकी बात नहीं हो पाई। उन्होंने उन्हें तलाशने की हरसंभव कोशिश की, लेकिन देर रात तक उनका कोई पता नहीं चला। रमन के परिजनों ने उन्हें तलाशने के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भी मदद की अपील जारी की थी।
स्थानीय पुलिस ने रमन की मौत की जानकारी उनके परिवार को अगले दिन सुबह दी। परिवार जब लखीमपुर खीरी अस्पताल की मॉर्च्युरी पहुंचा था तो उनका शव जमीन पर रखा मिला था।
कोई बोला-गुंडों ने गोली मार दी, तो कोई बोला-किसानों ने पीटकर मार डाला
रमन की मौत को लेकर तरह-तरह के दावे भी किए गए और अफवाहें भी फैलाई गईं। किसानों से जुड़े लोगों ने दावा किया कि उन्हें गाड़ियों में आए गुंडों ने गोली मारी, जबकि दूसरे पक्ष ने दावा किया कि उनकी मौत किसानों की पिटाई से हुई है। हालांकि रमन का परिवार इन दोनों ही दावों को खारिज करता है।
रमन के पिता राम दुलारे ने उनके शव की पहचान की थी। वे बताते हैं, ‘ये बात बिलकुल गलत है कि उसकी मौत लाठी-डंडों से पीटने से हुई। यदि उसे पीटा गया होता तो उसके शरीर पर पीटने के निशान होते। उसके शरीर पर घिसटने के निशान थे, खरोचें थीं और मिट्टी और बजरी भी चिपकी थी।’
राम दुलारे को अफसोस है कि उन्हें उनके बेटे के बारे में समय से जानकारी नहीं मिली। वे कहते हैं कि जब वो घटनास्थल पर उसे खोजने गए तो उन्हें मौके पर नहीं जाने दिया गया। वे कहते हैं, ‘हम ये दुआ कर रहे थे कि हमारा बेटा घायल हो, कहीं अस्पताल में हो या कहीं होने की उसकी कोई खबर आ जाए, लेकिन वह कहीं नहीं मिला। सुबह उसके मारे जाने की जानकारी हमें मिली।’
दहशत के मारे स्थानीय पत्रकार भी नाम बताने को तैयार नहीं
रमन कश्यप की तरह दर्जनों पत्रकार तिकुनिया में घटनाक्रम कवर कर रहे थे। ऐसे ही कई पत्रकारों से हमने बात करके उनके काम के हालात समझने की कोशिश की। ये पत्रकार इतने डरे हुए हैं कि इनमें से कई अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहते, क्योंकि उन्हें अपनी सुरक्षा को लेकर डर है।
ऐसे ही एक स्थानीय पत्रकार बताते हैं, ‘रमन से मेरी मुलाकात कवरेज के दौरान हुई थी। फिर वो दूसरी तरफ चले गए और मैं दूसरी तरफ। जब किसानों पर गाड़ी चढ़ने के बाद उनके लापता होने के बारे में पता चला तो हमने उन्हें तलाशने की कोशिश की, लेकिन वो कहीं नहीं दिखे। लोकल पुलिस ने भी देर शाम तक उनके बारे में कोई जानकारी नहीं दी।’
स्थानीय पत्रकार आमतौर पर लोकल नेताओं और पुलिसकर्मियों के भ्रष्टाचार से जुड़ी खबरें भी उजागर करते हैं। हमसे बात करने वाले पत्रकार कहते हैं, ‘हम पर हर तरफ से दबाव होता है। पुलिस भी कई बार हमारा मोबाइल छीन लेती है और कंटेंट डिलीट कर देती है। किसानों के प्रदर्शन के दौरान भी किसान हमें वीडियो बनाने से रोक रहे थे।’
इस पत्रकार का बनाया एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें किसान गाड़ियों में आए हमलावर लोगों को पीटते हुए दिख रहे हैं। वो कहते हैं, ‘ये वीडियो हमने छुपकर बनाया है, क्योंकि किसान मोबाइल छीन रहे थे। हम फील्ड में हर तरह का खतरा उठाते हैं, लेकिन हमारी कोई परवाह नहीं करता।’
गाड़ी मालिकों के खिलाफ तहरीर दी, अब तक नहीं मिली FIR की कॉपी
बुधवार को जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी रमन कश्यप के परिवार से मुलाकात करने पहुंचने वाले थे, उससे कुछ घंटे पहले ही प्रशासन के अधिकारियों ने रमन की पत्नी आराधना को 45 लाख रुपए की सहायता राशि का चेक दिया, जबकि किसानों को पहले ही मुआवजा दिया जा चुका था।
पवन कश्यप कहते हैं, ‘मेरे भाई एक पत्रकार थे और कवरेज करते हुए गाड़ी की चपेट में आकर मारे गए। हम चाहते हैं कि उनकी मौत की जांच हो। हमने गाड़ी मालिकों के खिलाफ पुलिस को तहरीर दी है, लेकिन अभी तक हमें FIR की कॉपी नहीं मिली है।’
पत्रकारों ने भी साथ नहीं दिया, कुछ ने तो उनकी मौत पर ही सवाल उठाए
पवन को सबसे ज्यादा अफसोस इस बात का है कि उनके भाई एक पत्रकार थे, लेकिन उनकी मौत के बाद पत्रकार संगठनों ने उनका साथ नहीं दिया, बल्कि कुछ पत्रकारों ने उनकी मौत पर ही सवाल उठाए। वे गुस्से भरे लहजे में कहते हैं, ‘मीडिया का काम सच दिखाना होता है, लेकिन अब ऐसा लगता है कि मीडिया में ऐसे लोग आ गए हैं, जिन्हें सच की परवाह नहीं है। एक बड़े टीवी चैनल के पत्रकार ने हमारे घर आकर मुझे धमकाने की कोशिश की और मेरे भाई को मौत को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की।’
पवन सवाल करते हैं, ‘मेरा भाई अपना काम करते हुए, अपना फर्ज निभाते हुए मारा गया। वह ना किसान था और ना ही BJP समर्थक, वो एक पत्रकार था, लेकिन उसकी मौत को अलग-अलग रंग देने की कोशिश हुई। हम समझ नहीं पा रहे हैं कि ये कोशिशें क्यों हो रही हैं।’
हम बात कर ही रहे थे कि रमन के घर पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के पहुंचने की खबर आई। अचानक पुलिस की मौजूदगी बढ़ गई। घर में कुर्सियां बिछाई जाने लगीं। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के अलावा उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह ने भी रमन के परिवार से मुलाकात कर संवेदना जाहिर की है।
अब रमन के परिवार को मुआवजा मिल गया है। उनकी मौत पर चर्चा भी हुई है, लेकिन पवन का सवाल बाकी है। वो कहते हैं ‘क्या मेरे भाई को इंसाफ मिल सकेगा, क्या पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी। जब तक ऐसा नहीं होगा, हम चैन से नहीं बैठेंगे।’

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