किसी मृत व्यक्ति का पुत्र न हो तो उसकी पत्नी कर सकती है धूप-ध्यान और दान-पुण्य
अभी पितृ (श्राद्ध) पक्ष चल रहा है और आज इस पक्ष की अष्टमी तिथि है। आज उन लोगों के लिए श्राद्ध कर्म किए जाएंगे, जिनकी मृत्यु अष्टमी तिथि पर हुई थी। पितरों के लिए श्राद्ध कर्म और दान-पुण्य पुरुष के साथ ही घर-परिवार की महिलाएं भी कर सकती हैं।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, पौराणिक कथा है कि देवी सीता ने राजा दशरथ के लिए पिंडदान, दान तर्पण आदि शुभ काम किए थे। कथा के अनुसार श्रीराम, लक्ष्मण और सीता पितृ पक्ष में राजा दशरथ के लिए पिंडदान करने गया तीर्थ क्षेत्र में गए थे।
उस समय श्रीराम-लक्ष्मण किसी काम से कहीं गए थे, तब सीता फल्गु नदी के किनारे पर उनका इंतजार कर रही थी। उस समय देवी सीता को राजा दशरथ की आत्मा ने दर्शन दिए और कहा था कि तुम ही मेरे लिए पिंडदान कर दो। अपने ससुर की आज्ञा मानकर सीता ने राजा दशरथ के लिए पिंडदान, तर्पण आदि शुभ कर्म किए थे। फल्गु नदी के किनारे पर अपने पुत्र की वधु के हाथो हुए पिंडदान से राजा दशरथ की आत्मा तृप्त हुई थी और उन्होंने सीता को आशीर्वाद दिया था।
घर-परिवार के पूर्वजों को याद करने का पर्व है पितृ पक्ष
पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों को श्रद्धा पूर्वक याद किया जाता है, इसी वजह से इस पक्ष का नाम श्राद्ध पक्ष भी है। दरअसल ये घर-परिवार के पूर्वजों को याद करने का पर्व है। हम अपने पूर्वजों को भी याद करें, उनके नाम पर कुछ ऐसे काम करें, जिनकी वजह से उन्हें आत्म शांति मिल सके, इसी उद्देश्य से पितृ पक्ष में धर्म-कर्म करने की परंपरा है।
किसी मृत व्यक्ति का पुत्र न हो तो पत्नी कर सकती है श्राद्ध
किसी मृत व्यक्ति का पुत्र न हो तो मृत्यु तिथि उसकी पत्नी को पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण के साथ ही दान-पुण्य करना चाहिए। बहू अपने मृत सास-ससुर के लिए भी श्राद्ध कर्म कर सकती है।
अगर किसी मृत व्यक्ति की कोई संतान नहीं है और उसकी पत्नी, माता-पिता भी नहीं हैं तो उसके कुटुंब के लोग पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण कर सकते हैं।
पितृ पक्ष की अमावस्या (2 अक्टूबर) पर घर-परिवार सभी पूर्वजों के लिए श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्ध करते समय सभी पितरों का ध्यान करना चाहिए।
किसी मृत व्यक्ति के घर-परिवार में कोई श्राद्ध कर्म करने वाले न हो तो उसके नाम से उसका शिष्य या कोई मित्र भी श्राद्ध कर सकता है।