17 सितंबर को अनंत चतुर्दशी:गणेश उत्सव के अंतिम दिन पूजा-पाठ के साथ दान-पुण्य जरूर करें
मंगलवार, 17 सितंबर को भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की (अनंत) चतुर्दशी है। इस तिथि पर गणेश जी की प्रतिमा के विसर्जन के साथ गणेश उत्सव का समापन होता है। अनंत चतुर्दशी पर गणेश जी के साथ ही देवी पार्वती, शिव जी, भगवान विष्णु, हनुमान जी और मंगल ग्रह की भी विशेष पूजा जरूर करें। पूजा-पाठ के बाद इस दिन दान-पुण्य भी करना चाहिए।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, अनंत चतुर्दशी पर घर में ही गणेश प्रतिमा का विसर्जन कर सकते हैं। इसके लिए किसी साफ बर्तन में पानी भरें और फिर उसमें प्रतिमा विसर्जित करें। जब पानी में प्रतिमा गल जाए, तब ये पानी और मिट्टी घर के गमलों में डाल सकते हैं। ऐसा करने से नदी-तालाब जैसे अन्य जल स्रोतों की स्वच्छता बनी रहती है। शास्त्रों में लिखा है कि नदी-तालाब को गंदा नहीं करना चाहिए।
अनंत चतुर्दशी पर गणेश जी की पूजा में दूर्वा की 21 गांठें जरूर चढ़ाएं। पूजा के अंत में भगवान गणेश से पूरे उत्सव के दौरान हुई जानी-अनजानी गलतियों के लिए क्षमा याचना भी करनी चाहिए।
मंगलवार को अनंत चतुर्दशी का शुभ योग है। इसलिए इस दिन मंगल ग्रह की भी पूजा-पाठ करनी चाहिए। मंगल की पूजा शिवलिंग रूप में जाती है। शिवलिंग जल चढ़ाएं, लाल गुलाल और लाल फूल से श्रृंगार करें। मसूर की दाल चढ़ाएं। मिठाई का भोग लगाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें। ऊँ अं अंगारकाय नम: मंत्र का जप करें।
मंगलवार को हनुमान जी की भी विशेष पूजा करनी चाहिए। हनुमान जी के सामने दीपक जलाकर सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करें। आप चाहें तो राम नाम का जप भी कर सकते हैं।
गणेश पूजा में 6 खास मंत्रों का जप करना चाहिए। जप कम से कम 108 बार करना चाहिए। गणेश जी के सामने दीपक जलाएं। पूजा करके दूर्वा की 21 गांठ चढ़ाएं। इसके बाद षडविनायकों के नामों का जप करें।
ये हैं गणेश जी के 6 नाम – ऊँ मोदाय नम:, ऊँ प्रमोदाय नम:, ऊँ सुमुखाय नम:, ऊँ दुर्मुखाय नम:, ऊँ अविध्यनाय नम:, ऊँ विघ्नकरत्ते नम:।
अनंत चतुर्दशी पर जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं। धन, कपड़े, जूते-चप्पल, कंबल, अनाज का दान करें। बच्चों को पढ़ाई-लिखाई की चीजें भेंट करें।
शास्त्रों में लिखा है कि कलौ चंडी विनायकौ यानी कलयुग में गणेश जी और देवी चंडी शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवी-देवता हैं। इसीलिए गणेश जी के साथ ही मां चंडी के मंत्रों का जप करें।
पूजन में इस मंत्र का भी जप भी कर सकते हैं – वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।