कहानी – वृंदावन में श्रीकृष्ण माखन चोरी की लीलाएं करते थे तो कई लोग इसकी शिकायत करते थे। कृष्ण से यशोदा मैया भी पूछती थीं कि तुम ऐसा क्यों करते हो?
कृष्ण लीला में कृष्ण अपने भक्तों का मानसिक सम्मान करते थे। वे कहते थे, ‘दूध, दही, माखन की कमी तो मेरे पास भी नहीं है, लेकिन मैं ब्रजवासियों से कहता हूं कि अपने परिश्रम से आप ये सब प्राप्त करते हैं और कर (टैक्स) के रूप में दुष्ट राजा कंस को दे देते हैं। आप अपनी मेहनत और शरीर का दुरुपयोग करते हैं। इसका मैं विरोध करता हूं। मनुष्य को अपने परिश्रम से अर्जित की हुई राशि दुष्टों को नहीं देना चाहिए।’
कृष्ण सभी को कर देने से रोकते थे, लेकिन लोग मानते नहीं थे तो लीला करके मटकियां फोड़ देते थे। कृष्ण कहते थे, ‘आप विचार करो, इस शरीर के भीतर एक आत्मा है और उस आत्मा के साथ मैं रहता हूं, जिसे आप परमात्मा कहते हैं। शरीर की कीमत क्या है? इस शरीर में जो भी गंधक, लोहा, चर्बी, नमक, पानी जैसे तत्व हैं, अगर इनकी एक पोटली बना लें और बाजार में बेचने जाएंगे तो बदले में थोड़ा सा धन ही मिलेगा। तो फिर इस शरीर का मोल क्या है? इसके भीतर प्राण हैं। प्राण उस दिव्य वायु को कहते हैं, जिससे हमारी जीवन ऊर्जा संचालित होती है। हमें इस शरीर का मूल्य समझना चाहिए। इसका दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।’
सीख – अधिकतर बीमारियां हमारी गलतियों की वजह से ही हमें होती हैं। हमारे आसपास जो भी बीमारियां फैली हैं, वे हमारी गलतियों का ही नतीजा है। हम ही गंदगी और बीमारियां फैलाते हैं और वही हमारे शरीर में उतर आती हैं। कृष्ण का संदेश ये है कि अपने परिश्रम से कमाया गया धन दुष्ट लोगों के हाथ में नहीं जाना चाहिए और अपने शरीर का मोल समझना चाहिए। सेहत और साफ-सफाई का ध्यान रखें।