नई दिल्ली। दो महीने पहले शुरू हुआ अंतरिक्ष की सैर का सिलसिला अब नई ऊंचाई पाने की तैयारी में है। अंतरिक्ष को भविष्य की कई संभावनाओं का द्वार माना जा रहा है। इन संभावनाओं का सहभागी होने से भारत आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकता है। मौजूदा समय में विश्व की कई कंपनियां अंतरिक्ष की वाणिज्यक दौड़ में शामिल हुई हैं। वर्तमान में वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग का आकार 350 बिलियन डालर है। अनुमान है कि वर्ष 2025 तक यह बढ़कर 550 बिलियन डालर हो जाएगा। इस प्रकार अंतरिक्ष एक अहम बाजार के रूप में विकसित हो रहा है। इसरो ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। हालांकि, भारत का अंतरिक्ष उद्योग में हिस्सेदारी का काफी छोटी है। यह सात बिलियन डालर के आस-पास है, जो वैश्विक बाजार का केवल दो फीसद ही है।
अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी उद्योग की भागीदारी तेज
- अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी उद्योग की भागीदारी तेजी से हो रही है। पूरी दुनिया में अंतरिक्ष एजेंसियों का काम निजी कंपनियों के साथ मिलकर किया जा रहा है। ऐसी सैकड़ों निजी कंपनियां हैं जो अपने ग्राहकों के लिए वाणिज्यिक उपग्रहों के निर्माण में जुटी हुई हैं।
- नासा ने अपने वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम के तहत निजी क्षेत्र की कंपनियों स्पेसएक्स ( SpaceX) और बोइंग (Boeing) के साथ अंतरिक्ष यान निर्माण के लिए समझौते किया था। अमेरिका द्वारा भविष्य में अंतरिक्ष यान का उपयोग करने के लिए लगभग सात बिलियन डालर का करार है।
- वर्जनि गैलेक्टिक, ब्लू ओरिजन, स्पेसएक्स जैसी प्राइवेट कंपनियां इस क्षेत्र में उतरकर भारी कमाई करना चाहती हैं। ब्रैंसन के मालिकाना हक वाली कंपनी वर्जनि गैलेक्टिक ने हाल में कहा है कि दो टेस्ट फ्लाइट्स के बाद अगले साल वह अंतरिक्ष की व्यावसायिक उड़ानें शुरू करेगी। इसके लिए उसने भी 600 लोगों से प्रति सीट ढाई लाख अमेरिकी डालर लेकर बुकिंग कर रखी है।
- अमेरिका अपने वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम के तहत ऐसी कंपनियों को निवेश के लिए आमंत्रित कर रहा है जो अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तथा पृथ्वी की निचली कक्षा में अंतरिक्ष परिवहन सेवाएं प्रदान कर सकें। निजी कंपनियों के आने से अंतरिक्ष यात्रा की लागत में तेजी से कमी आने की भी उम्मीद है।
आठ सीटों वाला कैप्सूल तैयार
हालांकि, अंतरिक्ष यत्रा महंगी है। यह ज्यादातर लोगों की पहुंच से बाहर है। हालांकि, एक रिपोर्ट सामने आई है जिसके अनुसार एक ऐसी कंपनी है जो इसे अपेक्षाकृत किफायती बनाना चाह रही है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि स्पेस पर्सपेक्टिव ने एक आठ सीटों वाला पायलट वाला कैप्सूल बनाया है। इसका टेस्ट भी किया जा चुका है। स्पेसशिप नेपच्यून नामक कैप्सूल को एक विशाल हाइड्रोजन से भरे गुब्बारे द्वारा आसमान की तरफ उठाया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार, जो कैप्सूल बनाया गया है उसमें चारों ओर एक रिफ्रेशमेंट बार, बैठने के लिए कुर्सियां और खिड़कियां हैं। स्पेसशिप नेपच्यून टिकट की कीमत 1,25,000 डॉलर यानी करीब 92.5 लाख रुपये है जबकि वर्जिन गेलेक्टिक टिकट की कीमत 4,50,000 डॉलर यानी करीब 3.3 करोड़ रुपये है।
भारत भी बना रहा है स्पेस स्टेशन
भारत इस दशक के अंत तक यानी वर्ष 2030 तक अंतरिक्ष में अपने स्वयं के अंतरिक्ष स्टेशन निर्माण पर विचार कर रहा है। भारत ने वर्ष 2017 में ही स्पेस डाकिंग जैसी तकनीक पर शोध करने के लिये बजट का प्रावधान किया था। यह तकनीक स्पेस स्टेशन में उपयोग होने वाले माडयूल को आपस में जोड़ने के लिए आवश्यक होती है। इसके बाद से ही भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की चर्चा जोरों पर है। विशेषज्ञों के अनुसार इस स्टेशन का भार 20 टन होगा जो कि आइएसएस (450 टन) और चीनी अंतरिक्ष स्टेशन (80 टन) से काफी हल्का है। इस स्टेशन में 4-5 अंतरिक्ष यात्री 5-20 दिनों के लिए रुक सकेंगे। इस स्टेशन को पृथ्वी की निम्न कक्षा में लगभग 400 किमी की चाई पर स्थापित किया जाएगा।